Dwadashi Shradh
द्वादशी तिथि का प्रारम्भ 10 अक्टूबर 2023, दोपहर 03 बजकर 08 मिनट और समापन 11 अक्टूबर शाम 05 बजकर 37 मिनट।
पितृ पक्ष द्वादशी के दिन श्राद्ध करने का विशेष समय होता है। इस श्राद्ध को संन्यासी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन उन मृत सदस्यों के सम्मान में श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु द्वादशी के दिन हुई थी।
इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति सन्यासी रहा हो तो इस दिन उसका श्राद्ध भी किया जाता है। यदि परिवार का कोई सदस्य संन्यास ग्रहण करता है तो उसकी मृत्यु के बाद उसके श्राद्ध में यही तिथि और समय लागू किया जाता है।
द्वादशी श्राद्ध का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार, द्वादशी श्राद्ध उन मृत परिवार के सदस्यों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि को हुई थी। इस दिन द्वादशी श्राद्ध शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में किया जा सकता है। इसके अलावा, श्राद्ध के लिए द्वादशी तिथियां उन लोगों के लिए उपयुक्त हैं जो अपने जीवन के दौरान संन्यास ले लेते हैं। द्वादशी श्राद्ध को बरस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
द्वादशी श्राद्ध पूजा विधि
द्वादशी श्राद्ध (Dwadashi Shradh)पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए तिल के तेल का दीपक और सुगंधित धूप जलाएं। फिर जल में चीनी और तिल मिलाकर अर्पित करें। ठीक से जल चढ़ाएं। इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है। इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है। ऐसे में आप द्वादशी श्राद्ध के दिन जरूरतमंदों को भोजन और धन का दान कर सकते हैं।
द्वादशी श्राद्ध पर आप पितरों के लिए भगवत गीता का दसवां अध्याय भी पढ़ सकते हैं। ऐसा करने से आपके पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा। साथ ही श्राद्ध कर्म पूरा करने के बाद दस ब्राह्मणों को भोजन कराएं। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो आप इसके बजाय केवल एक ब्राह्मण को भोजन करा सकते हैं। साथ ही इस दिन कौवे, गाय, कुत्ते और चींटियों को भी भोजन दें।
पितरों का आशीर्वाद
जल
श्राद्ध प्रक्रिया, चाहे वह पिंडदान हो या तर्पण, जल के बिना असंभव है। तर्पण करते वक्त अंजुली में जल निकालकर पितरों को तर्पण करते हैं। माना जाता है कि इससे पितर प्रसन्न होते थे। 16 श्राद्ध के समय पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से पितृ दोष दूर होता है।
कुश
कुश एक प्रकार की जड़ी-बूटी है जिसे शास्त्रों में बहुत पवित्र माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुश के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास होता है। माना जाता है कि कुश से अमृत निकलता है। कहा जाता है कि जब तर्पण किया जाता है तो कुश के अग्र भाग से जल की बूंदें गिरती हैं और उसमें मौजूद अमृत को पितर भी ग्रहण कर लेते हैं। यही वजह है कि उन्हें संतुष्टि प्राप्त होती है।
काला तिल
पितरों की उपासना के लिए काले तिल का उपयोग किया जाता है। भगवान विष्णु के लिए काले तिल का बहुत महत्व है। पितृ पक्ष में दरिद्रता दूर करने के लिए जल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। काले तिल के दान से पूर्वज अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
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