
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 12
तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मोप्रतापवान् ॥१२॥
हिंदी भावार्थ:
उस समय कौरवों के वृद्ध और पराक्रमी पितामह भीष्म ने दुर्योधन के उत्साह को बढ़ाते हुए सिंह की गर्जना के समान ऊँचे स्वर में गर्जना की और जोर से शंख बजाया।
गूढ़ व्याख्या / विस्तार से समझें:
यह श्लोक युद्ध की शुरुआत से ठीक पहले की स्थिति का वर्णन करता है। जब दुर्योधन ने अपनी सेना की व्यवस्था के बारे में द्रोणाचार्य से कहा, तब युद्ध क्षेत्र में जोश भरने और सैन्य बल का प्रदर्शन करने के लिए भीष्म पितामह, जो कि कौरवों के सबसे वरिष्ठ और महान योद्धा थे, उन्होंने बहुत जोर से शंख बजाया।
यह शंखनाद केवल एक संकेत नहीं था, बल्कि यह सैनिकों के मनोबल को ऊँचा करने, दुश्मन को भयभीत करने और युद्ध आरंभ होने की घोषणा करने का एक माध्यम था। शंख की आवाज सिंह की गर्जना जैसी थी — शक्तिशाली और आत्मविश्वास से भरी।
यहाँ यह भी संकेत मिलता है कि भीष्म पितामह अब युद्ध के लिए तैयार हैं, और उनका यह कृत्य पूरे कौरव पक्ष में उत्साह की लहर दौड़ा देता है।
मुख्य बिंदु:
- शंखनाद का उद्देश्य केवल ध्वनि करना नहीं था — यह एक मनोवैज्ञानिक हथियार भी था।
- भीष्म पितामह का शंख बजाना, उनके अनुभव और वीरता का प्रतीक था।
- यह कार्य दुर्योधन के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए किया गया था।
- यह क्षण युद्ध की औपचारिक शुरुआत का संकेत देता है।






