
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 17
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥१७॥
(संजय कहता है)
काशी देश का महान धनुर्धर राजा, महारथी शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट और अपराजेय सात्यकि – ये सभी पांडवों की सेना में मौजूद हैं।
विस्तृत व्याख्या:
इस श्लोक में संजय पांडवों की सेना के कुछ अन्य महावीर योद्धाओं का उल्लेख करता है जो युद्ध में अपराजेय माने जाते हैं।
- काशी का राजा: एक अत्यंत पराक्रमी और श्रेष्ठ धनुर्धर था।
- शिखण्डी: महाभारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला योद्धा, जो भीष्म की मृत्यु का कारण बना।
- धृष्टद्युम्न: द्रौपदी का भाई और वह योद्धा जिसे द्रौपद ने द्रोणाचार्य के वध के लिए यज्ञ से उत्पन्न किया था।
- विराट: मत्स्य देश का राजा, जिन्होंने अज्ञातवास के दौरान पांडवों को शरण दी थी।
- सात्यकि: यादवों में श्रेष्ठ, श्रीकृष्ण का प्रिय सेनापति और महान धनुर्धर, जो युद्ध में अपराजेय था।
यह श्लोक दर्शाता है कि पांडवों की सेना में केवल संख्याबल नहीं, बल्कि योग्य, कुशल और अनुभवी योद्धाओं का संबल भी था, जो युद्ध में निर्णायक भूमिका निभा सकते थे।






