
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 21
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥२१॥
हिंदी भावार्थ:
हे महाराज (धृतराष्ट्र)! उस समय कपिध्वज अर्जुन ने इन्द्रियों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण से यह वचन कहा —
“हे अच्युत! कृपया मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलिए।”
गूढ़ व्याख्या / विस्तार से समझाइए:
इस श्लोक में अर्जुन युद्ध आरंभ होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण से आग्रह करते हैं कि वे उनके रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाएं। इसका उद्देश्य यह था कि वे यह देख सकें कि उनके सामने युद्ध में कौन-कौन योद्धा खड़े हैं — किन-किन से उन्हें युद्ध करना होगा।
यह श्लोक केवल एक भौतिक आग्रह नहीं है, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक संकेत छिपे हैं:
- “सेनयोरुभयोर्मध्ये” — यह दर्शाता है कि अर्जुन अब निर्णय की दहलीज पर खड़ा है। उसे अपने कर्तव्य (धर्म) और अपने मोह के बीच से चुनाव करना है।
- “रथं स्थापय मेऽच्युत” — अर्जुन पूरी तरह से श्रीकृष्ण पर भरोसा करते हुए उन्हें ‘अच्युत’ (जो कभी पतित नहीं होते) कहकर संबोधित करते हैं। यह श्रीकृष्ण की दिव्यता और अर्जुन के समर्पण को दर्शाता है।
यह श्लोक उस मोड़ का संकेत देता है जहाँ अर्जुन युद्ध की वास्तविकता से सीधे सामना करता है — और वहीं से अर्जुन का मानसिक संघर्ष (विषाद) शुरू होता है, जो गीता का मुख्य विषय है।






