चौथा श्राद्ध पितृ पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है। यह तिथि हर साल चंद्र कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती है। 2024 में चौथा श्राद्ध 21 सितंबर को होगा। यदि पितृ पक्ष का चौथा श्राद्ध (चतुर्थ श्राद्ध) शनिवार के दिन आता है, तो यह दिन विशेष रूप से पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने और शनिदेव के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस दिन की पूजा विधि और अनुष्ठान आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है कि इस दिन क्या करना चाहिए और किन देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए:
1. पितरों का श्राद्ध और तर्पण:
- पितृ पक्ष का चौथा श्राद्ध उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, जिनका निधन चतुर्थी तिथि को हुआ हो।
- श्राद्ध का मतलब होता है अपने पितरों को श्रद्धा के साथ जल, भोजन, और अन्य आवश्यक वस्त्र अर्पित करना।
- इस दिन पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मणों को भोजन कराना मुख्य अनुष्ठान होते हैं।
- तर्पण के दौरान जल में तिल मिलाकर पितरों को समर्पित किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो।
2. शनिदेव की पूजा:
- चूंकि चौथा श्राद्ध शनिवार के दिन पड़ रहा है, इस दिन शनिदेव की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
- शनिदेव को सरसों का तेल, काले तिल, और काले वस्त्र चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। इससे शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं।
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जा सकता है:
“ॐ शं शनैश्चराय नमः”
3. भगवान विष्णु की पूजा:
- पितृ पक्ष में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। विष्णु जी को श्राद्ध और तर्पण में पूजा जाता है, क्योंकि उन्हें पितरों के रक्षक के रूप में जाना जाता है।
- इस दिन विष्णु जी की पूजा कर “विष्णु सहस्रनाम” या “विष्णु चालीसा” का पाठ करना शुभ माना जाता है।
4. भगवान शिव की पूजा:
- पितरों को मुक्ति देने वाले देवता माने जाने वाले भगवान शिव की पूजा भी इस दिन की जाती है। शिवलिंग पर जल, दूध, और बेलपत्र चढ़ाकर उनकी आराधना की जाती है।
- “मृत्युंजय मंत्र” का जाप भी इस दिन अत्यधिक लाभकारी होता है: “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्”
5. पितृ को प्रसन्न करने के मंत्र :
- ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
- ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
6. दान और पुण्य:
- इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए काले तिल, काले वस्त्र, और सरसों का तेल दान करना शुभ माना जाता है।
- ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देना और जरूरतमंदों को वस्त्र, भोजन, और धन का दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- पीपल के पेड़ की पूजा और उसकी जड़ों में जल अर्पित करना भी शुभ माना जाता है, क्योंकि पीपल के वृक्ष को पितरों का निवास स्थल माना जाता है।
7. विशेष नियम और परहेज:
- इस दिन तामसिक भोजन (मांस, मछली, अंडे) का सेवन नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध अनुष्ठान करते समय पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- श्राद्धकर्ता को संयम और संयमित आचरण बनाए रखना चाहिए और मन में शुद्ध भाव से अपने पितरों को अर्पण करना चाहिए।
- पूजा में धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य (भोग) का प्रयोग किया जाता है और पितरों को उनकी पसंदीदा चीजें अर्पित की जाती हैं।
शनिवार को पड़ने वाला चौथा श्राद्ध पितरों और शनिदेव की विशेष पूजा के साथ मनाया जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान जैसे धार्मिक कर्म अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं, वहीं शनिदेव की पूजा से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं। इस दिन का पालन श्रद्धा और नियमों के साथ करने से पितरों का आशीर्वाद और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
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