होलिका दहन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च महीने में पड़ती है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है, जिसे पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
होलिका दहन 2025 में कब है?
साल 2025 में होलिका दहन 13 मार्च को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे होगी और इसका समापन 14 मार्च 2025 को दोपहर 12:23 बजे होगा।
भद्रा काल का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा काल में शुभ कार्य करना वर्जित होता है, क्योंकि इसे अशुभ समय माना जाता है। इस वर्ष, 13 मार्च को भद्रा पूंछ शाम 6:57 बजे से रात 8:14 बजे तक और भद्रा मुख रात 8:14 बजे से 10:22 बजे तक रहेगा। अतः होलिका दहन भद्रा समाप्ति के बाद, रात 11:26 बजे से 12:30 बजे के बीच करना शुभ रहेगा।
होलिका दहन का महत्व और कारण
होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप एक अत्याचारी राजा था जो स्वयं को भगवान मानता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, जो हिरण्यकश्यप को स्वीकार नहीं था। प्रह्लाद की भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से बच गया।
अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक बनी और तभी से होलिका दहन का पर्व मनाया जाने लगा।
होलिका दहन की विधि
होलिका दहन का पर्व हिंदू धर्म में शुभ माना जाता है। इसे करने के लिए सही विधि और शुद्ध भावनाओं का होना आवश्यक है। नीचे होलिका दहन की संपूर्ण विधि दी गई है:
1. होलिका दहन के लिए आवश्यक सामग्री
- लकड़ियाँ और उपले (गोबर के कंडे)
- गंगाजल
- रोली, अक्षत (चावल)
- फूल और माला
- कच्चा सूत (मौली)
- नारियल
- हल्दी और साबुत मूंग
- बताशे और गुड़
- धूप-दीप
- नई फसल के अन्न (जैसे जौ और गेहूं की बालियां)
2. होलिका दहन की तैयारी
- होलिका दहन से पहले किसी शुभ मुहूर्त में होलिका (लकड़ियों और उपलों से बनी संरचना) तैयार करें।
- होलिका के साथ एक छोटी लकड़ी या उपले को प्रह्लाद का प्रतीक मानकर रखें।
- पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करें।
3. पूजा की प्रक्रिया
(क) पूजन और मंत्रोच्चार
- गणेश वंदना – सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और उन्हें प्रणाम करें।
- गंगाजल से शुद्धिकरण – गंगाजल छिड़ककर पूजा स्थल और होलिका को शुद्ध करें।
- मौली बांधना – होलिका के चारों ओर कच्चे सूत (मौली) को तीन या सात बार घुमाते हुए बाँधें।
- अर्पण सामग्री चढ़ाना – होलिका पर रोली, अक्षत, फूल, हल्दी, साबुत मूंग, बताशे और गुड़ चढ़ाएं।
- नारियल अर्पण – संकल्प लेते हुए नारियल अर्पित करें।
- नवीन फसल अर्पण – गेहूं और जौ की बालियों को होलिका में अर्पित करें।
(ख) मंत्र और होलिका दहन
- पूजा के बाद होलिका दहन का शुभ समय आने पर लकड़ियों और उपलों में अग्नि प्रज्वलित करें।
- होलिका जलने के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें:“ॐ होलायै नमः”
- परिवार के सभी सदस्य होलिका की तीन या सात बार परिक्रमा करें और उसमें जौ-गेहूं की बालियां अर्पित करें।
- होलिका की राख को माथे पर लगाने से शुभ फल मिलता है।
4. होलिका दहन के बाद की परंपराएं
- होलिका की अग्नि से घर की किसी वस्तु को गर्म करें, जिससे नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
- होलिका की राख को तिलक के रूप में माथे पर लगाने से शुभता बढ़ती है।
- अगले दिन रंगों के त्योहार धुलेंडी (होली) का आनंद लें।
5. होलिका दहन से जुड़ी मान्यताएं
- मान्यता है कि होलिका दहन से बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
- होलिका दहन की अग्नि से अन्न सेंकने से फसलों की वृद्धि होती है।
- यदि कोई विशेष मनोकामना हो, तो होलिका दहन के समय भगवान से प्रार्थना करें।
होलिका दहन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक और प्राकृतिक संतुलन का भी संदेश देता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और भक्ति की जीत होती है।