
शुक्र स्तोत्र (Shukra Stotra) शुक्र ग्रह की शांति और कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। शुक्र ग्रह को वैदिक ज्योतिष में सौंदर्य, धन, वैवाहिक सुख, कला, और समृद्धि का कारक माना गया है। यह स्तोत्र शुक्रदेव की स्तुति में लिखा गया है और इसे नियमित रूप से पढ़ने से शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है।
शुक्र स्तोत्र का पाठ क्यों किया जाता है?
शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए यह स्तोत्र किया जाता है। शुक्र ग्रह जीवन में वैभव, भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, कला, और प्रेम का कारक है। यदि शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो, तो इसका पाठ करने से उसके दोष शांत हो जाते हैं।
शुक्र स्तोत्र के लाभ:
- धन और वैभव: इस स्तोत्र का पाठ करने से धन-वैभव में वृद्धि होती है।
- वैवाहिक सुख: शुक्र ग्रह वैवाहिक जीवन का प्रतीक है, और इसका पाठ वैवाहिक समस्याओं को दूर करता है।
- संतान सुख: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को इसका पाठ लाभकारी होता है।
- रोगों से मुक्ति: रोग और मानसिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
- कलात्मक उन्नति: यह कलाकारों और रचनात्मक व्यक्तियों के लिए बहुत उपयोगी है।
- पापों से मुक्ति: यह स्तोत्र पापों का नाश करता है और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
शुक्र स्तोत्र
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नमः।।
अर्थ: हे भार्गव श्रेष्ठ शुक्रदेव, देवता और दानवों द्वारा पूजित! वर्षा को रोकने और कराने वाले, आपको प्रणाम।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारगः।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकरः।।
अर्थ: देवयानी के पिता और वेद-वेदांगों के ज्ञाता, आप महान तपस्वी और शुद्ध रूप हैं। आप शंकर (कल्याणकारी) हैं।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नमः।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे।।
अर्थ: जिन्होंने जीवन विद्या प्राप्त की, उन भृगुपुत्र शुक्रदेव को नमन।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बरः।
यस्योदयें जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह।।
अर्थ: जो तारामंडल के मध्य में स्थित हैं और अपनी चमक से जगत को प्रकाश देते हैं। आपके उदय से संसार शुभता को प्राप्त करता है।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन।।
अर्थ: जब आप अस्त होते हैं, तो अशुभता बढ़ती है। हे त्रिपुरावासी दैत्यों को जीवित करने वाले शुक्रदेव, आपको प्रणाम।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नमः।।
अर्थ: हे ययाति के गुरु और कवियों के प्रिय शुक्रदेव, बलि को राज्य प्रदान करने वाले, आपको नमन।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनमः।।
अर्थ: हे भृगुनंदन, आपको नमस्कार। जिन्होंने जीवन विद्या सिखाई, उन्हें बारंबार प्रणाम।
नमः शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि।
नमः कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने।।
अर्थ: शुक्र, जो काव्य के प्रतीक और कारण के स्वरूप हैं, उन्हें प्रणाम।
स्तवराजमिदं पुण्यं भार्गवस्य महात्मनः।
यः पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम।।
अर्थ: यह स्तोत्र पुण्यदायक है। जो इसे पढ़ते या सुनते हैं, वे अपनी सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकामः स्त्रियमुत्तमाम।।
अर्थ: जो संतान चाहते हैं, उन्हें संतान सुख मिलता है। जो धन और वैभव चाहते हैं, उन्हें संपत्ति प्राप्त होती है।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितैः।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम।।
अर्थ: इसे विशेष रूप से शुक्रवार को पढ़ना चाहिए। अन्य दिनों में भी भृगुनंदन की पूजा की जा सकती है।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा।।
अर्थ: रोग से पीड़ित व्यक्ति रोगों से मुक्त हो जाता है। भय से परेशान व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है। जो भी इसे श्रद्धा से पढ़ता है, उसे उसकी इच्छित वस्तु प्राप्त होती है।
प्रातः काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नतः।
सर्वपापविनिर्मुक्तः प्राप्नुयाच्छिवसन्निधिः।।
अर्थ: प्रातः काल में इस स्तोत्र का पाठ करें। इससे व्यक्ति पापों से मुक्त होकर शिव की कृपा प्राप्त करता है।
शुक्रवार को विशेष रूप से इसका पाठ करने से देवी-देवताओं की कृपा और शुक्र ग्रह की सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।