॥ ध्यान ॥
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
अर्थ — मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, अर्धचन्द्र को अपने मस्तक पर धारण करने वाली, वृषभ (बैल) की सवारी करने वाली, इस जगत की पीड़ा को हरने वाली तथा यशस्विनी माता शैलपुत्री की वंदना करता हूँ।
पूर्णेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
अर्थ — माँ शैलपुत्री का रूप पूर्णिमा के समान आनंद देने वाला है, वे ही माँ गौरी हैं और इस सृष्टि की मूलाधार हैं। वे नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा हैं जिनकी तीन आँखें हैं। मातारानी पीले रंग के वस्त्रों को धारण करती हैं और सिर पर रत्नों से जड़ित मुकुट को पहनती हैं। उन्होंने कई प्रकार के आभूषणों से अपना अलंकार किया हुआ है।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
अर्थ — हम सभी आनंदित मन के साथ शैलपुत्री माता की वंदना करते हैं। शैलपुत्री माता इस धरती का सृजन करती हैं और उनका रूप बहुत ही सुन्दर व सबसे रमणीय है। माँ शैलपुत्री कामना करने योग्य, सौंदर्य से युक्त, स्नेह भाव ली हुई, पतली कमर व नितम्बों के साथ हैं।
॥ स्तोत्र ॥
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
अर्थ — शैलपुत्री माँ नवदुर्गा का प्रथम रूप हैं जो हमें भवसागर पार करवा देती हैं। वे ही हमें धन व वैभव प्रदान कर हमारा उद्धार करती हैं। शैलपुत्री माता को मेरा प्रणाम है।
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
अर्थ — शैलपुत्री मां ही तीनों लोकों की जननी हैं और उनके द्वारा ही हम सभी को आनंद की अनुभूति होती है। सभी स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करने वाली शैलपुत्री माँ को हमारा नमन है।
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
अर्थ — शैलपुत्री माता इस संसार के सभी प्राणियों की ईश्वरी हैं। वे ही आसक्ति व मोहमाया का नाश कर देती हैं। हम सभी को मुक्ति व भक्ति प्रदान करने वाली शैलपुत्री मां को हमारा प्रणाम है।
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