
भारतीय संस्कृति में सूर्य की संक्रांति का विशेष महत्त्व है। साल भर में कुल 12 संक्रांतियाँ होती हैं, जिनमें से मेष संक्रांति (Mesh Sankranti) का विशेष धार्मिक और ज्योतिषीय महत्त्व है। इसे कुछ क्षेत्रों में बैशाख संक्रांति भी कहा जाता है, क्योंकि यह बैशाख मास में पड़ती है। यह वही समय होता है जब सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है।
यह दिन नववर्ष, नई ऊर्जा और नए आरंभ का प्रतीक होता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि मेष संक्रांति क्या होती है, इसके पीछे की पौराणिक और ज्योतिषीय कथा क्या है, इस दिन क्या करना चाहिए, और यह क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती है।
मेष संक्रांति क्या है?
संक्रांति का अर्थ है – स्थान परिवर्तन या संक्रमण। जब सूर्य एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उस क्षण को संक्रांति कहा जाता है। जब सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है, तो उसे मेष संक्रांति कहा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार, मेष राशि सूर्य की उच्च राशि होती है। जब सूर्य इसमें प्रवेश करता है तो यह नया सौर वर्ष आरंभ करता है। यही कारण है कि कई भारतीय पंचांगों में मेष संक्रांति को नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
मेष संक्रांति के पीछे की कथा
मेष संक्रांति से जुड़ी कोई एक कथा नहीं है, बल्कि यह कई मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ी हुई है। यहां कुछ प्रमुख कथाएं प्रस्तुत हैं:
1. भगवान सूर्य और पृथ्वी की यात्रा
मान्यता है कि जब सूर्य देव मकर संक्रांति को दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, तो उनके उत्तरायण मार्ग की यह पहली महत्वपूर्ण स्थिति मेष राशि में होती है। इस समय पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट होती है, जिससे ऊर्जा और जीवन का संचार अधिक होता है। इसे प्रकृति का नवजीवन भी कहा गया है।
2. परशुराम जयंती से जुड़ाव
कई स्थानों पर मेष संक्रांति को भगवान परशुराम के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे और उन्हें ब्राह्मणों के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। इस दिन उनके जन्म के उपलक्ष्य में पूजन, कथा और व्रत का आयोजन किया जाता है।
3. गंगा अवतरण की कथा
कुछ पौराणिक मान्यताओं में कहा गया है कि इसी दिन भागीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन गंगा स्नान और तीर्थों में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है।
मेष संक्रांति का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
1. नववर्ष का आरंभ
हिंदू पंचांग के अनुसार, संक्रांति को सौर नववर्ष का आरंभ माना जाता है। कई प्रांतों में जैसे पंजाब में बैसाखी, केरल में विशु, तमिलनाडु में पुत्थांडु, असम में बोहाग बिहू, और ओडिशा में पण संक्रांति मनाई जाती है – जो सब मेष संक्रांति के आस-पास ही आते हैं।
2. सकारात्मक ऊर्जा का संचार
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है, तो वह अपनी उच्च स्थिति में आता है जिससे जीवन में ऊर्जा, उत्साह और आत्मबल का संचार होता है। यह समय नए कार्य आरंभ करने के लिए उत्तम होता है।
3. पुण्यकाल
इस दिन स्नान, दान और जप का विशेष महत्व होता है। विशेषकर सूर्य नारायण की पूजा, गाय को चारा देना, और गरीबों को अन्न-वस्त्र दान करना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।
मेष संक्रांति पर क्या करें?
1. प्रातःकाल स्नान करें
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों या घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इससे तन-मन शुद्ध होता है और यह आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।
2. सूर्य को अर्घ्य दें
स्नान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाना चाहिए। तांबे के लोटे में जल, लाल पुष्प, अक्षत (चावल) और रोली डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। यह जीवन में उन्नति, स्वास्थ्य और समृद्धि देता है।
3. व्रत और पूजा
इस दिन व्रत रखकर भगवान सूर्य, भगवान विष्णु और परशुराम जी की पूजा करनी चाहिए। तुलसी के पत्ते, घी का दीपक, गुड़, चावल और लाल फूल से पूजा करें।
4. दान-पुण्य करें
मेष संक्रांति पर दान का विशेष महत्त्व होता है। आप गरीबों को वस्त्र, अन्न, फल, गुड़, तांबा, घी आदि दान कर सकते हैं। यह पापों का नाश करता है और पुण्य प्रदान करता है।
5. परशुराम जयंती मनाएं
यदि आपके क्षेत्र में परशुराम जयंती इस दिन मनाई जाती है, तो आप भगवान परशुराम की मूर्ति या चित्र के सामने धूप-दीप, चंदन, पुष्प आदि से पूजा करें। उनके जीवन से जुड़ी कथाएं पढ़ना या सुनना भी लाभकारी होता है।
मेष संक्रांति से जुड़े ज्योतिषीय उपाय
- सूर्य को जल चढ़ाते समय “ॐ घृणिः सूर्याय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- सूर्य देव के समक्ष लाल वस्त्र और गुड़ का भोग रखें।
- तांबे के बर्तन में पानी भरकर जरूरतमंद को दान करें।
- सूर्य को तेजस्विता और आत्मबल का कारक माना जाता है, अतः इस दिन से कोई नया कार्य आरंभ करना शुभ होता है।
मेष संक्रांति का आध्यात्मिक संदेश
मेष संक्रांति हमें यह संदेश देती है कि जैसे सूर्य अपनी उच्च राशि में आकर सम्पूर्ण प्रकृति को ऊर्जा और जीवन प्रदान करता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में सकारात्मकता, ऊर्जा और कर्मशीलता का संचार करना चाहिए। यह दिन आत्मचिंतन, नव आरंभ, और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।
मेष संक्रांति केवल खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि यह जीवन के नव आरंभ, उत्साह और ऊर्जा का पर्व है। यह दिन हमारे भीतर छिपी ऊर्जा को जागृत करता है, और हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने जीवन में भी एक नई शुरुआत करें। स्नान, दान, जप, व्रत और पूजा जैसे कर्मों द्वारा हम न केवल अपने जीवन को पवित्र बनाते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मकता फैलाते हैं।
आप भी इस मेष संक्रांति पर आत्मचिंतन करें, अच्छे संकल्प लें और अपने भीतर की ऊर्जा को पहचानें। यही इस पर्व की सच्ची साधना है।






