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Panchami Shradh

श्राद्ध कार्य हिंदू धर्म का एक अभिन्न अंग है जन्म से मृत्य तक समस्त संस्कारों का विशेष महत्व रहा है। मृत्यु के पश्चात पितरों की शांति हेतु किया जाने वाला श्राद्ध कार्य एक उत्तम शुभदायक कर्म होता है। 

कुंवारा पंचमी के दिन अविवाहित और पंचमी के दिन मरने वाले पितरों का श्राद्ध किया जाता है। कुंवारापंचमी पर श्राद्ध कर्म करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

पंचमी के श्राद्ध को क्यों कहते हैं अविवाहित पंचमी

आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की पंचमी के श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है। इसे कुंवार पंचमी भी कहते हैं। इस दिन श्राद्ध उन्हीं लोगों के लिए किया जाता है जिनकी या तो पंचमी तिथि को मृत्यु हो गई हो और पंचमी तिथि का समय उन्हें प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त वे लोग जो अविवाहित रहे। जिनके विवाह नहीं हुए इन्हें अविवाहित पिता भी कहा जाता है। इसी कारण से इसे अविवाहित पंचमी के नाम से भी पुकारा जाता है।

इस समय पर पिंडदान कुंवारा पंचमी पर राहुकाल को छोड़कर किसी भी समय किया जा सकता है।

कुंवारा पंचमी श्राद्ध की विधि:

  • कुंवारा पंचमी पर अविवाहित ब्राह्मण को न्योता दें। 
  • पंचमी श्राद्ध के दिन  स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपें। 
  • इसके बाद उस स्थान को गंगाजल से पवित्र करें और घर के आंगन में रंगोली बनाएं। 
  • पितरों के लिए भोजन बनाएं, हो सके तो खीर जरूर बनाएं। 
  • ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण करवाएं। 
  • यदि आपकी कोई विवाहित बहन है तो उसके परिवार को भोजन के लिए आमंत्रित करें। 
  • पितरों के लिए अग्नि में खीर अर्पित करें। 
  • इसके बाद गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास अलग से निकालें।
  • ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं। 
  • पितरों की आत्मा की शांति के लिए  वस्त्र, दक्षिणा दान करें।


क्या न करे:

कुंवारा पंचमी पर कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है; 

  • इस दिन प्याज, काला नमक, सरसों का साग, लहसुन, बासी खाना,  लौकी, सत्तू, मसूर की दाल,  चना या मांस का सेवन न करे। 
  • शास्त्रों के अनुसार तामसिक भोजन करने से से पितृ नाराज हो जाते हैं। 
  • पंचमी श्राद्ध के  दिन कोई मांगलिक कार्य न करे। 
  • कुंवारा पंचमी पर झूठ न बोले और दूसरों का अपमान भी ना करें।