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Parshuram Dwadashi | शस्त्र और शास्त्र के ज्ञाता भगवान परशुराम की जयंती | PDF

परशुराम द्वादशी हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आता है। इस दिन श्रद्धालु भगवान परशुराम का पूजन करके धर्म, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।

भगवान परशुराम को शक्ति, बुद्धि, और न्यायप्रियता का प्रतीक माना जाता है। वे क्षत्रियों के अन्याय और अत्याचार को समाप्त करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके जीवन से यह सिख मिलती है कि धर्म की रक्षा के लिए समय-समय पर सशक्त और साहसी होना आवश्यक है।

परशुराम जी का परिचय

भगवान परशुराम का जन्म महाराज ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र रूप में हुआ था। इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, लेकिन उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन किया और शस्त्र विद्या में निपुण थे। इसलिए उन्हें “ब्राह्मणों में क्षत्रिय” कहा जाता है। भगवान परशुराम चिरंजीवी माने जाते हैं — यानी वे अमर हैं और आज भी जीवित हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे कलियुग के अंत में भगवान कल्कि को शस्त्र विद्या सिखाएंगे।

परशुराम द्वादशी क्यों मनाई जाती है?

यह पर्व भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उनकी नीतियों, त्याग, और धर्म के लिए संघर्ष को स्मरण करने का दिन है।

परशुराम जी ने एक समय में पृथ्वी से 21 बार अधर्मी और अत्याचारी क्षत्रियों का विनाश किया था। उनके इस कार्य का उद्देश्य केवल बदला नहीं था, बल्कि धर्म की स्थापना करना था। इसलिए यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि जब भी अधर्म बढ़े, तब ईश्वर अवतार लेकर संतुलन बनाते हैं।

इस दिन क्या करना चाहिए?

परशुराम द्वादशी पर श्रद्धालु कई धार्मिक गतिविधियाँ करते हैं जो इस प्रकार हैं:

1. स्नान और संकल्प:
  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है।
  • यदि गंगा स्नान संभव न हो तो घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद व्रत और पूजा का संकल्प लें।
2. व्रत का पालन:
  • परशुराम द्वादशी पर व्रत करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।
  • यह व्रत निर्जल, फलाहार या साधारण अन्न के साथ किया जा सकता है, श्रद्धा अनुसार।
3. भगवान परशुराम की पूजा:
  • पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजन करें।
  • उन्हें चंदन, केसर, कमल पुष्प, तुलसी, नारियल, और जनेऊ अर्पित करें।
  • परशुराम जी को परशु (कुल्हाड़ी) अति प्रिय है, इसलिए पूजा में इसका चित्र या छोटा प्रतीक भी रखा जा सकता है।
4. पाठ और मंत्र:
  • भगवान परशुराम की कथा पढ़ें।
  • “ॐ परशुरामाय नमः” का जप कम से कम 108 बार करें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम और परशुराम स्तुति का पाठ भी लाभकारी है।
5. दान-पुण्य करें:
  • इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जलपात्र, छाता, जूते, और धातु के पात्र दान करना शुभ होता है।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना विशेष पुण्यदायक है।
6. कथा श्रवण:
  • परशुराम जी की जीवन कथा का श्रवण करना, विशेषकर उनके अवतरण, पराक्रम और धर्म की स्थापना के प्रसंगों को जानना चाहिए।

इस दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  1. मांस-मदिरा का सेवन न करें।
  2. अहंकार, क्रोध, और कटु वचन से बचें।
  3. झूठ बोलना, चोरी, या किसी का अपमान करने से बचें।
  4. इस दिन शस्त्रों का अपमान न करें क्योंकि भगवान परशुराम को शस्त्र अत्यंत प्रिय थे।
  5. अपवित्र या गंदे वस्त्रों में पूजा न करें।
  6. रात्रि में अधिक भोजन या विलासिता से दूर रहें।
  7. पूजन के समय मोबाइल फोन या अन्य ध्यान भटकाने वाली चीजों का प्रयोग न करें।

परशुराम द्वादशी के लाभ

1. धर्म और न्याय की भावना का जागरण:

इस दिन का पालन करने से व्यक्ति के अंदर धर्म, न्याय, और सत्य की शक्ति उत्पन्न होती है। परशुराम जी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना आवश्यक है।

2. जीवन में साहस और आत्मबल की वृद्धि:

परशुराम द्वादशी का व्रत रखने और उनकी पूजा करने से व्यक्ति में आत्मबल, साहस, और विवेक की वृद्धि होती है।

3. पितृदोष और कुल दोष से मुक्ति:

मान्यता है कि इस दिन विशेष पूजा और दान करने से पितृदोष और कुल दोष दूर होते हैं।

4. शिक्षा और विद्या में सफलता:

भगवान परशुराम को शास्त्र और शस्त्र दोनों में निपुण माना गया है। उनकी आराधना करने से विद्यार्थी और प्रतियोगिता परीक्षा देने वाले छात्रों को विशेष लाभ मिलता है।

5. बुरे कर्मों से मुक्ति:

व्रत, पूजन और दान से व्यक्ति को पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है और अगले जन्म में उत्तम जीवन की प्राप्ति होती है।

6. स्वास्थ्य लाभ:

आयुर्वेद और योग मानते हैं कि व्रत शरीर की शुद्धि करता है। परशुराम द्वादशी का व्रत मानसिक और शारीरिक रूप से भी व्यक्ति को शुद्ध करता है।

7. क्रोध और अहंकार पर नियंत्रण:

परशुराम जी के जीवन से यह सिख मिलती है कि शक्ति का प्रयोग केवल धर्म के लिए हो। उनकी पूजा करने से क्रोध और अहंकार पर नियंत्रण की प्रेरणा मिलती है।

परशुराम जी की विशेषताएँ

  • भगवान परशुराम को शिव जी से परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त हुई थी।
  • वे महर्षि विश्वामित्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, और कर्ण जैसे योद्धाओं के गुरु रहे हैं।
  • उन्होंने हैहय वंश के सहस्रबाहु अर्जुन का वध किया था।
  • वे तीर्थराज प्रयाग, महेंद्र पर्वत, और कुंभकोणम् आदि तीर्थस्थलों पर निवास करते थे।
  • उन्होंने दक्षिण भारत के कोकण और मालाबार तट का निर्माण किया था, ऐसा कहा जाता है।

परशुराम द्वादशी न केवल भगवान परशुराम की जन्मतिथि है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक प्रेरणा का पर्व है। यह दिन हमें सिखाता है कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति और बुद्धि दोनों का उपयोग करना चाहिए। उनके जीवन से हमें साहस, न्याय, और कर्तव्यनिष्ठा की शिक्षा मिलती है।

जो भी श्रद्धा से इस दिन व्रत रखता है, पूजा करता है और सच्चे मन से भगवान परशुराम का स्मरण करता है, उसे जीवन में सफलता, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक उन्नति अवश्य मिलती है।

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