Parshva Ekadashi पार्श्वा एकादशी

ParshvaEkadashi 2024

पार्श्वा एकादशी को वामन एकादशी या जयन्ती एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण उपवास का दिन है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होता है। यह भाद्रपद महीने (अगस्त–सितंबर) के शुक्ल पक्ष की एकादशी (चंद्रमा के बढ़ते चरण की ग्यारहवीं तिथि) को आती है। यह एकादशी चातुर्मास्य के चार पवित्र महीनों के दौरान एक महत्वपूर्ण घटना का प्रतीक है।

2024 में पार्श्वा एकादशी की तिथियाँ और समय

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर 2024, सुबह 05:07 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 15 सितंबर 2024, सुबह 03:45 बजे
  • पारण (व्रत तोड़ने का समय): 15 सितंबर 2024, सूर्योदय के बाद और द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले।

पार्श्वा एकादशी का महत्व

  1. विष्णु का करवट बदलना: हिंदू धर्म के अनुसार, चातुर्मास्य के चार महीनों के दौरान, भगवान विष्णु योगनिद्रा में शेषनाग पर सो जाते हैं। यह स्थिति देवशयनी एकादशी के दिन आषाढ़ मास (जून–जुलाई) में शुरू होती है। पार्श्वा एकादशी के दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, जिससे इसका नाम “पार्श्वा” पड़ा, जिसका अर्थ है “करवट”। यह करवट बदलना चातुर्मास्य के दूसरे हिस्से की शुरुआत का प्रतीक है।
  2. वामन अवतार: इस एकादशी का संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी है, जो उन्होंने असुरराज बलि को पराजित करने के लिए लिया था। इस दिन व्रत रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  3. आध्यात्मिक लाभ: इस एकादशी का व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है, परिवार की समृद्धि होती है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्त मानते हैं कि इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है।

पार्श्वा एकादशी की कथा

पार्श्वा एकादशी की कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार और असुरराज महाबली से जुड़ी है। महाबली, जो एक धर्मप्रिय और दानी राजा थे, ने अपनी भक्ति और शक्ति से तीनों लोकों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। देवताओं को महाबली की शक्ति से खतरा महसूस हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु से मदद की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने महाबली को परखने के लिए वामन नामक एक बौने ब्राह्मण का अवतार लिया।

जब वामन ब्राह्मण महाबली के यज्ञ में पहुंचे और तीन पग भूमि की मांग की, तो महाबली ने इस छोटी-सी मांग को स्वीकार कर लिया, भले ही उसके गुरु शुक्राचार्य ने चेतावनी दी थी कि वामन ब्राह्मण असाधारण हैं। जैसे ही महाबली ने वामन की मांग को स्वीकार किया, वामन ने विराट रूप धारण कर लिया और एक पग में स्वर्ग, दूसरे में पृथ्वी, और तीसरे पग के लिए महाबली का सिर मांगा। महाबली ने अपने सिर को भगवान के चरणों पर रख दिया, जिससे उसकी पूर्ण समर्पण और भक्ति प्रकट हुई।

भगवान विष्णु महाबली की भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया, साथ ही उसे हर साल एक बार अपनी प्रजा से मिलने का आशीर्वाद दिया। यह घटना ओणम उत्सव के रूप में केरल में मनाई जाती है। पार्श्वा एकादशी भगवान विष्णु के इस वामन अवतार का प्रतीक है, और इस दिन व्रत रखने से भक्तों को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण ही भगवान के करीब पहुंचने का मार्ग है।

व्रत और पूजा की विधि

  1. व्रत: एकादशी व्रत के अनुसार भक्त अनाज, दाल और कुछ अन्य खाद्य पदार्थों का त्याग करते हैं। व्रत आंशिक या पूर्ण हो सकता है। कुछ लोग केवल फल, दूध और पानी का सेवन करते हैं, जबकि कुछ लोग निर्जला व्रत भी रखते हैं।
  2. भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है, विशेष रूप से उनके वामन अवतार की। भगवान को फल, फूल, तुलसी पत्र और मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ और भजन-कीर्तन भी किए जाते हैं।
  3. पवित्र ग्रंथों का पाठ: भक्त इस दिन भागवत पुराण और वामन अवतार की कथा का श्रवण या पाठ करते हैं। यह कथाएँ भक्ति, विनम्रता, और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की महत्ता बताती हैं।
  4. जागरण: कुछ भक्त पूरी रात जागरण करते हैं, भगवान विष्णु का भजन करते हैं और ध्यान लगाते हैं।
  5. दान-पुण्य: इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। भक्त गरीबों को भोजन कराते हैं, वस्त्र दान करते हैं या मंदिरों में दान देते हैं।

पार्श्वा एकादशी व्रत के लाभ

  1. पापों से मुक्ति।
  2. शांति, समृद्धि, और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति।
  3. भगवान विष्णु की कृपा से सुरक्षा, सुख-शांति और सफलता।
  4. धर्म के मार्ग पर बने रहने की प्रेरणा।

पार्श्वा एकादशी आध्यात्मिक आत्मनिरीक्षण, उपवास और भगवान विष्णु की भक्ति का दिन है। इस दिन का व्रत करने से न केवल भक्त को आशीर्वाद मिलता है, बल्कि प्रार्थना, ध्यान और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से ईश्वर के प्रति गहरा संबंध भी स्थापित होता है।