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Purnima Shradh 2025 | पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व, तिथि और विधि | PDF

  • Shradh
  • सितम्बर 6, 2025

पूर्णिमा श्राद्ध क्या है?

पूर्णिमा श्राद्ध, पितृपक्ष श्राद्ध का ही एक भाग है। यह उस दिन किया जाता है जब भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि होती है। इसे श्रावणी पूर्णिमा श्राद्ध या पूर्णिमा श्राद्ध भी कहा जाता है। यह हिंदू धर्म में पितरों की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन जिन लोगों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती या जिनका अलग-अलग दिनों पर श्राद्ध संभव नहीं होता, उनके लिए श्राद्ध किया जाता है। इसे “सर्वपितृ पूर्णिमा” भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का सामूहिक श्राद्ध किया जा सकता है।

2025 में यह कब मनाया जाएगा?

पूर्णिमा श्राद्ध, जिसे भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध या पितृ पक्ष का आरंभ भी माना जाता है, साल 2025 में रविवार, 7 सितंबर को मनाया जाएगा।

यह कब मनाया जाता है?

  • भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को यह श्राद्ध किया जाता है।
  • अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु की तिथि (तिथि के अनुसार) ज्ञात न हो, तो उनके लिए यह करना शास्त्रों में मान्य है।
  • यह तिथि पितरों को तृप्त करने और उनके आशीर्वाद पाने के लिए विशेष मानी जाती है।

पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व

पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी गहरा है।

  • यह हमें अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़े रखता है।
  • यह हमें कृतज्ञता का पाठ सिखाता है कि आज हम जो कुछ भी हैं, वह हमारे पूर्वजों की वजह से हैं।
  • यह हमें त्याग, आस्था और भक्ति का संदेश देता है।
  • यह दिन जीवन की नश्वरता और कर्म के महत्व को याद दिलाता है।

क्यों मनाया जाता है?

  • माना जाता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
  • यह पितरों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का अवसर है।

इस दिन क्या किया जाता है?

  1. स्नान और संकल्प:सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है। फिर पवित्र संकल्प लेकर पितरों का स्मरण किया जाता है।
  2. तर्पण:जल, तिल और कुश को मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है। यह क्रिया पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए की जाती है।
  3. पिंडदान:आटे, तिल, जौ और चावल से बने पिंड पितरों के नाम से अर्पित किए जाते हैं।
  4. पुष्प और दीपदान:पितरों की स्मृति में पुष्प अर्पित किए जाते हैं और दीप जलाया जाता है।
  5. ब्राह्मण भोजन और दान:श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और यथाशक्ति दान दिया जाता है। यह पितरों को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ उपाय माना गया है।
  6. विशेष भोजन की तैयारी:घर में खीर, पूरी, दाल, सब्जी आदि पकाकर पितरों को अर्पित किया जाता है। उसके बाद परिवारजन प्रसाद ग्रहण करते हैं।

किन लोगों का श्राद्ध इस दिन होता है?

  • जिनकी मृत्यु तिथि (तिथि के अनुसार) ज्ञात न हो।
  • जिनका श्राद्ध अलग-अलग तिथियों पर संभव न हो पाया हो।
  • कुछ परिवारों में सभी पितरों का सामूहिक श्राद्ध इसी दिन किया जाता है।

आध्यात्मिक संदेश

पूर्णिमा श्राद्ध हमें यह सिखाता है कि जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु के बाद हर आत्मा अपने मूल स्रोत में विलीन हो जाती है। इसलिए हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए केवल अनुष्ठान ही नहीं बल्कि सच्चे मन से श्रद्धा और आस्था भी आवश्यक है।

यह एक ऐसा अवसर है जब हम अपने पूर्वजों (पितरों) को श्रद्धा, आस्था और कृतज्ञता के साथ स्मरण करते हैं। यह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि अपने परिवार और वंशजों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का माध्यम है। इस दिन किए गए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म न केवल पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और आशीर्वाद भी लाते हैं।

पूर्णिमा श्राद्ध हमें यह भी सिखाता है कि जीवन अस्थायी है और हर आत्मा अपने मूल स्वरूप में लौटती है। इसलिए हमें अपने कर्मों और परंपराओं के माध्यम से परिवार, समाज और आध्यात्मिक मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।

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