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भारतीय संस्कृति में व्रत-त्योहारों का विशेष स्थान है। ये न केवल धार्मिक आस्था को मजबूती देते हैं, बल्कि जीवन में अनुशासन, संयम और आत्मिक शुद्धता भी लाते हैं। ऐसे ही व्रतों में से एक है रंभा तीज व्रत, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र, सौभाग्य और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है और इसका नाम ‘रंभा' इसलिए पड़ा क्योंकि यह व्रत अप्सरा रंभा द्वारा सबसे पहले किया गया था।
रंभा तीज व्रत क्या है?
रंभा तीज व्रत एक स्त्रियों द्वारा रखा जाने वाला पारंपरिक व्रत है। यह व्रत पत्नी अपने पति के सुख-समृद्धि, दीर्घायु और वैवाहिक जीवन में प्रेम बनाए रखने के लिए करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से नवविवाहित स्त्रियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन गौरी माता (माँ पार्वती) और अक्षय वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
रंभा तीज व्रत का इतिहास और पौराणिक कथा
बहुत पुरानी बात है। स्वर्ग लोक की एक अत्यंत सुंदर अप्सरा थी – रंभा। वह नृत्य और सौंदर्य की देवी मानी जाती थी। एक बार उसकी मुलाक़ात एक मानव ऋषि से हुई, जो अत्यंत तेजस्वी, शांत और गंभीर स्वभाव का था। रंभा को उस ऋषि से प्रेम हो गया। कुछ समय पश्चात उन्होंने विवाह कर लिया और एक आम स्त्री की तरह गृहस्थ जीवन बिताने लगी।
हालाँकि वे दोनों एक-दूसरे से अत्यंत प्रेम करते थे, लेकिन ऋषि का जीवन कठिन तप और साधना से भरा था। रंभा को इस बात का डर सताने लगा कि उनका पति इतनी कठोर तपस्या करता है कि कहीं अकाल मृत्यु न हो जाए। अप्सराएँ अमर होती हैं, लेकिन उनका पति मानव था, और उसे मृत्यु का भय था।
रंभा ने यह बात स्वर्ग की दूसरी अप्सराओं और देवी-देवताओं से साझा की। तब देवी गौरी (माँ पार्वती) ने उसे एक विशेष व्रत रखने की सलाह दी। यह व्रत था – ज्येष्ठ मास की शुक्ल तृतीया को किया जाने वाला व्रत, जिसे उन्होंने ही बताया था।
देवी पार्वती ने कहा,
“हे रंभा! जैसे मैंने शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप और व्रत किए, वैसे ही यदि तुम यह व्रत श्रद्धा और नियमों से करोगी तो तुम्हारे पति को दीर्घायु का वरदान मिलेगा।”
रंभा ने देवी की आज्ञा का पालन किया। उसने पूरे दिन निर्जल व्रत रखा, वट वृक्ष की पूजा की, और देवी गौरी की उपासना कर पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना की।
उसकी पूजा, श्रद्धा और आस्था से प्रसन्न होकर देवी गौरी प्रकट हुईं और उसे वरदान दिया:
“हे रंभा! तुम्हारी तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि तुम्हारे पति को लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन और वैराग्य से युक्त गृहस्थ सुख प्राप्त होगा। और जो भी स्त्री इस व्रत को नियमपूर्वक करेगी, उसे भी अखंड सौभाग्य और दांपत्य सुख की प्राप्ति होगी।”
इसके बाद रंभा का पति दीर्घायु हुआ, और उनके जीवन में प्रेम, सुख और सौंदर्य बना रहा। तभी से यह व्रत ‘रंभा तीज व्रत’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया और महिलाओं द्वारा पति की आयु, प्रेम और सौभाग्य की प्राप्ति हेतु किया जाने लगा।
यह व्रत क्यों मनाया जाता है?
- पति की लंबी उम्र के लिए
- वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बनाए रखने हेतु
- सौभाग्यवती रहने के लिए
- सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए
- अपार आत्मिक बल और संयम को विकसित करने के लिए
रंभा तीज व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है। यह तिथि हिन्दू पंचांग के अनुसार बदलती रहती है, अतः इसे हर वर्ष कैलेंडर देखकर निश्चित किया जाता है।
रंभा तीज व्रत की पूजन विधि
1. व्रत का संकल्प:
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें:
“मैं अमुक नाम, आज के दिन रंभा तीज का व्रत अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य एवं सुखमय दांपत्य जीवन की कामना से कर रही हूँ। हे माता पार्वती, मुझे इस व्रत को पूर्ण करने की शक्ति और आशीर्वाद दें।”
2. व्रत का नियम:
- यह व्रत दिनभर निर्जल (बिना पानी के) भी रखा जा सकता है या फलाहार सहित।
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन मन, वचन, और कर्म से शुद्ध रहें।
3. पूजा सामग्री:
- हल्दी, कुमकुम, चावल
- सुपारी, पान, नारियल
- मिट्टी या धातु की गौरी माता की मूर्ति
- वट वृक्ष की डाली (यदि संभव हो तो वट वृक्ष के नीचे पूजा करें)
- लाल चुनरी, श्रृंगार सामग्री, मिठाई, फल, दीपक आदि
4. वट वृक्ष पूजा विधि:
- यदि पास में वट वृक्ष (बरगद) हो तो उसके नीचे जाकर पूजा करें, अन्यथा घर में वट वृक्ष की डाली लाकर कलश में स्थापित करें।
- वट वृक्ष को जल चढ़ाएं, रोली और अक्षत से तिलक करें, मौली बांधें।
- वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और श्रद्धा से व्रत कथा सुनें।
5. व्रत कथा श्रवण:
पूजन के पश्चात रंभा तीज व्रत कथा का श्रवण करना अत्यंत आवश्यक होता है। इससे व्रत पूर्ण माना जाता है।
रंभा तीज व्रत के लाभ
- पति की लंबी उम्र: इस व्रत को करने से पति को आयुष्य लाभ प्राप्त होता है।
- वैवाहिक जीवन में मधुरता: पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास बढ़ता है।
- स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति: स्त्री को अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त होता है।
- संतान सुख: जो महिलाएं संतान सुख की इच्छा रखती हैं, उनके लिए यह व्रत फलदायी होता है।
- धार्मिक पुण्य: इस व्रत से आत्मा की शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन क्या करें
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- लाल या पीले वस्त्र पहनें।
- सोलह श्रृंगार करें।
- गौरी माता और वट वृक्ष की विधिवत पूजा करें।
- व्रत कथा का श्रवण करें।
- दिनभर व्रत रखें और शाम को आरती के बाद फलाहार करें।
- जरूरतमंद स्त्रियों को वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, मिठाई आदि दान करें।
इस दिन क्या न करें
- इस दिन किसी से झगड़ा, कटु वचन या अपशब्द का प्रयोग न करें।
- झूठ बोलने से बचें।
- बाल और नाखून काटना वर्जित है।
- तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज आदि) का सेवन न करें।
- व्रत का मज़ाक या तिरस्कार न करें।
- अपवित्र होकर पूजा न करें।
रंभा तीज व्रत न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय नारी के अपने पति के प्रति प्रेम, श्रद्धा, समर्पण और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक भी है। यह व्रत स्त्रियों के जीवन में सौंदर्य, संस्कार और संयम का अद्भुत समावेश करता है। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए करने से देवी पार्वती प्रसन्न होती हैं और दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।