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ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ।

अर्थ – हे माता लक्ष्मी देवी आपकी जय हो, भगवान विष्णु जी भी प्रतिदिन आपका ध्यान करते हैं। मां लक्ष्मी आपकी जय हो।

उमा, रमा, ब्रह्माणी तुम ही जगमाता,
सूर्य, चन्द्रमा ध्यावत, नारद, ऋषि गाता ।

अर्थ –   हे माता आप ही उमा, रमा, और ब्रह्माणी के रूप में सारे जग में आपकी कृपा है। सूर्य और चंद्रमा भी आपका ध्यान करते हैं। और नारद वे ऋषि मुनि भी आपका गुण गाते हैं।

दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता,
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ।

अर्थ –   हे माता आप ही मां दुर्गा का रूप है और आपसे ही हमें सुख व संपत्ति प्राप्त होती है। हे माता जो भी सच्चे मन से आपका ध्यान करता है। उसे रिद्धि सिद्धि और धन की प्राप्ति हो जाती है।

तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभदाता,
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ।

अर्थ –हे माता पाताल लोक में भी आप का निवास है। हर तरह से आप शुभ और मंगल करने वाली है। हम सब आप की प्रेरणा से ही अच्छे कर्म कर पाते हैं जिससे भवनिधि की प्राप्ति होती है।

जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता,
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ।

अर्थ –   हे माता लक्ष्मी जिस भी घर में आपका निवास हो जाता है। वहां पर हमेशा सद्गुणों का भाव रहता है। और हर काम संभव हो जाता है। अर्थात सब काम बनने लगते हैं और मन में कोई डर या घबराहट नहीं रहती।

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता,
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ।

अर्थ –  हे माता लक्ष्मी आपकी कृपा के बिना किसी तरह का है यज्ञ संभव नहीं है। आपकी कृपा के बिना किसी को भी वस्त्र नहीं मिल सकते हे माता जो भी हम खाते पीते हैं। वह सब कुछ आपकी कृपा से ही मिल पाता है।

शुभ गुण मन्दिर सुन्दर क्षीरोदधि जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ।

अर्थ – हे माता आपका मंदिर अर्थात आपका लोक जो आप का निवास स्थान है भव्य और सुंदर है। समुद्र मंथन के समय आप की उत्पत्ति हुई है। आपकी कृपा के बगैर कोई भी रत्नों को प्राप्त नहीं कर सकता।

महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता,
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ।

अर्थ –  जो भी कोई महालक्ष्मी जी की आरती का गायन करना है उसे हर तरह का आनंद प्राप्त होता है। और उसे सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।