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Maa Brahmacharini Vrat Katha

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

 दुर्गा जी की नौ शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। नवरात्रि में दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी नाम में ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। कहा भी है- वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्त्व और तप ‘ब्रा’ शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अत्यन्त भव्य एवं पूर्ण ज्योतिर्मय है। देवी ब्रह्मचारिणी के बायें हाथ में कमण्डल और दाहिने हाथ में तपस्या के लिए माला है। अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद जी द्वारा दिये उपदेश से इन्होंने भगवान् शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठोर तपस्या की। इसी कठोर तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।

मॉ एक हजार साल केवल फल-मूल खाकर तपस्या की थी। फिर सौ सालों तक केवल शाक खाकर जीवन यापन किया। बहुत दिनों तक कठोर उपवास करते हुए खुले आकाश के नीचे बारिस और धूप में भयंकर कष्ट सह किये इतनी कठोर तपस्या करने के बाद तीन हजार सालों तक मॉ ने केवल पेडो से धरती पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह भगवान् शंकर की पूजा अर्चना करती रहीं। फिर कुछ समय के पश्चात उन्होंने पेड से गिरे सूखे बेलपत्रों को भी खाना बन्द कर दिया। इस प्रकार हजारों सालो तक उन्होने बिना कुछ खाये और बिना कुछ पिये कठोर तपस्या करती रहीं। पत्तों (पर्ण) को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया।

इस प्रकार हजारो से कठोर तपस्या करने के कारण देवी ब्रह्मचारिणी के पूर्व जन्म का शरीर दूबला पतला और एकदम क्षीण हो गया। उनकी यह निर्बल दशा देखकर उनकी माता मैना को बहुत दुख हुआ। माता मैना ने उनकी इस कठोर तपस्या से बाहर निकालने के लिए उन्हे आवाज दी ‘उमा’, अरे! नहीं, ओ! नहीं!’ तभी से ब्रह्मचारिणी देवी को ‘उमा’ नाम से जाना गया।

देवी को इस तरह कठोर तपस्या करते देख तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, मुनि और पुण्य आत्माये सभी देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या की प्रशंसा करने लगे कि ऐसी तपस्या करना बहुत ही पुण्य कर्म है और आज से पहले किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नही की है। और अन्त में ब्रह्मा जी ने आकाश में प्रकट होकर देवी ब्रह्मचारिणी से बहुत प्रसन्न होकर कहा कि ‘हे देवि! आज तक किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नहीं की है। इतनी कठोर तपस्या करना तो केवल तुम्हीं से सम्भव है। देवी तुम्हारे इस परम पवित्र और अलौकिक कार्य की चर्चा चोरों दिशाओ मे हो रही है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। भगवान् शंकर से ही तुम्हारा विवाह होगा और वही तुम्हें पति रूप प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या को खत्म कर अपने घर लौट जाओ। बहुत जल्द तुम्हारे पिता तुम्हें बापस घर ले जाने आ रहे हैं।

माँ दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी सभी भक्तों और सिद्ध लोगो को अनन्त फल देने वाला है। माता ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा सुनने मात्र से मनुष्य में तप, संयम, सदाचार, वैराग्य और त्याग की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन से कठिन संघर्षों में भी उसका मन विचलित नहीं होता और वह अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहते है। मां ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करने से सर्वत्र सिद्धि और विजय का आशिर्वाद प्राप्त होता है। नवदुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं मां ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक और साधू अपना ध्यान ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित करते है। इस चक्र में ध्यान धरने वाला योगी मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।