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जय तुलसी माता, जय तुलसी माता।

सब जग की सुख दाता वर माता।।

अर्थ — हे तुलसी माता!! आपकी जय हो। आप ही इस जगत को सुख प्रदान करने वाली और हम सभी की माता हो अर्थात तुलसी माता के प्रभाव से ही हमें सुखों की प्राप्ति होती है।

सब योगों के ऊपर सब रोगों के ऊपर।

रूज से रक्ष करके, भव त्राता।।

अर्थ — तुलसी माता इस लोक में सबसे ऊपर हैं। उनसे ऊपर इस जगत में कोई भी नहीं है। तुलसी माता ही हमारे सभी रोगों का निवारण करती हैं और उनके पौधे में औषधीय गुण होते हैं। वे ही हमारी रक्षा करके हमारा उद्धार करती हैं।

बटुपुत्री हे श्यामा, सुर वल्ली हे ग्राम्या।

विष्णुप्रिये जो तुमको सेवे सो नर तर जाता।।

अर्थ — उनका एक नाम श्यामा भी है जो बटुपुत्री है और वे हर घर में निवास करती हैं अर्थात हम सभी के घर में तुलसी का पौधा होता है। वे भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं और जो भी मनुष्य तुलसी माता की आरती करता है, वह भवसागर को पार कर जाता है।

हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।

पतितजनों की तारिणी तुम हो विख्याता।।

अर्थ — तुलसी माता श्रीहरि के शीश पर चढ़ाई जाती हैं और उनकी तीनों लोकों में वंदना की जाती है। सभी के सुहाग की रक्षा करने वाली तुलसी माता हर जगह प्रसिद्ध हैं।

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।

मानव लोक तुम्हीं से सुख संपत्ति पाता।।

अर्थ — तुलसी माता ने इस मानव लोक में जन्म लेकर सभी को धन्य कर दिया और उनका भवन दिव्य ज्योति लिए हुए है। यह मनुष्य लोक तुलसी माता की कृपा से ही सभी तरह की सुख-संपदा को प्राप्त करता है।

हरि को तुम अति प्यारी तुम श्यामवर्ण सुकुमारी।

प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता।।

अर्थ — तुलसी माता श्रीहरि को बहुत प्रिय लगती हैं और उनका वर्ण श्याम है। वे सुकुमारी हैं। तुलसी माता के लिए श्रीहरि का प्रेम बहुत ही अद्भुत है और हम सभी का उनसे माँ का नाता है।