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Aditya Hridaya Stotra | आदित्य हृदय स्तोत्र | PDF

यह स्तोत्र भगवान सूर्य की स्तुति करता है और इसे पाठ करने से शक्ति, साहस और विजय प्राप्त होती है। आइए, इसके प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझते हैं:

आदित्य हृदय स्तोत्र

1. ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥

अर्थ: जब भगवान राम युद्ध में अत्यधिक थके हुए थे और सोच में डूबे हुए थे, उन्होंने अपने सामने रावण को युद्ध के लिए खड़ा देखा।

2. दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवानृषिः॥

अर्थ: उसी समय देवता युद्ध देखने के लिए एकत्र हुए और महर्षि अगस्त्य भगवान राम के पास आए।

3. राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥

अर्थ: महर्षि अगस्त्य ने कहा: “हे महाबली राम, इस सनातन और गुप्त ज्ञान को सुनो, जिससे तुम युद्ध में सभी शत्रुओं को पराजित कर सकोगे।

4. आदित्य हृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यमक्षयं परमं शिवम्॥

अर्थ: यह आदित्य हृदय स्तोत्र पवित्र और सभी शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसका नित्य पाठ करने से परम कल्याण और अजेयता प्राप्त होती है।

5. सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्॥

अर्थ: यह स्तोत्र सभी मंगलों का कारण है, सभी पापों का नाश करने वाला है, चिंता और शोक का नाश करता है, और आयु को बढ़ाने वाला है।

6. रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥

अर्थ: जो रश्मियों के साथ उदित होते हैं, जिन्हें देवता और असुर दोनों नमन करते हैं, उन भगवान सूर्य को पूजो, जो भुवनों के स्वामी हैं।

7. सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः॥

अर्थ: यह सूर्य देवता सभी देवताओं का स्वरूप हैं, और अपनी किरणों के द्वारा संसार के देवता, असुर और समस्त प्राणियों का पालन करते हैं।

8. एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥

अर्थ: यह सूर्य ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चंद्र और वरुण के रूप में भी हैं।

9. पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥

अर्थ: सूर्य पितरों, वसुओं, साध्य देवताओं, अश्विनीकुमारों, मरुतों, मनु, वायु, अग्नि, प्रजाप्राण और ऋतु निर्माण करने वाले प्रभाकर (सूर्य) हैं।

10. आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥

अर्थ: यह आदित्य, सविता, सूर्य, आकाश में चलने वाले, पूषा, रश्मियों के स्वामी, सोने के समान चमकने वाले, हिरण्यरेता और दिवाकर हैं।

11. हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्॥

अर्थ: सूर्य भगवान हरे रंग के घोड़ों वाले रथ पर सवार हैं, जिनकी हजारों किरणें हैं, जो अंधकार का नाश करते हैं, शिव स्वरूप, त्वष्टा, मार्तण्ड और किरणों से युक्त हैं।

12. हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥

अर्थ: यह सूर्य हिरण्यगर्भ, शीतनाशक, तपन, भास्कर, रवि, अग्नि के समान गर्भ वाले, अदिति के पुत्र और शिशिर ऋतु को नष्ट करने वाले हैं।

13. व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥

अर्थ: यह सूर्य आकाश के स्वामी, अंधकार को नष्ट करने वाले, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद के ज्ञाता, वर्षा के कारण, जल के मित्र और विंध्य पर्वत को पार करने वाले हैं।

14. आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः॥

अर्थ: यह सूर्य अत्यधिक तेजस्वी, मण्डलाकार, मृत्यु के समान, पिंगल वर्ण वाले, सर्वव्यापी, कवि, विश्व के तेजस्वी, रक्त वर्ण और समस्त सृष्टि के कारण हैं।

15. नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते॥

अर्थ: यह सूर्य नक्षत्रों, ग्रहों और तारों के स्वामी हैं, विश्व को पोषित करने वाले, सभी तेजस्वियों में श्रेष्ठ और बारह रूपों में विभाजित हैं। आपको नमस्कार है।

16. नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥

अर्थ: पूर्व दिशा के पर्वत को नमस्कार है, पश्चिम दिशा के पर्वत को भी नमस्कार है। ज्योतिर्गणों के स्वामी और दिन के अधिपति को नमस्कार है।

17. जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥

अर्थ: विजयी, कल्याणकारी, हरे घोड़ों वाले, हजारों किरणों से युक्त आदित्य को बार-बार नमस्कार है।

18. नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥

अर्थ: उग्र रूप वाले, वीर स्वरूप, सारंग धारण करने वाले, पद्म (कमल) को खिलाने वाले, और मार्तण्ड सूर्य को नमस्कार है।

19. ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥

अर्थ: ब्रह्मा, शिव, अच्युत (विष्णु) और सूर्य के रूप में जो प्रकट होते हैं, उन तेजस्वी सूर्य को, जो सब कुछ भक्षण करने वाले और रौद्र रूप धारण करने वाले हैं, उनको नमस्कार है।

20. तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥

अर्थ: जो अंधकार का नाश करने वाले, शीत का नाश करने वाले, शत्रुओं का नाश करने वाले, असीम शक्ति वाले, कृतघ्नता का नाश करने वाले, देवताओं के देवता और ज्योतिष के स्वामी हैं, उनको नमस्कार है।

21. तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥

अर्थ: जो सूर्य तप्त सोने के समान चमकते हैं, जो हरि रूप में प्रकट होते हैं, जो संसार की रचना करते हैं, और जो अंधकार को नष्ट करते हैं, उन सूर्य को नमस्कार है।

22. नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥

अर्थ: यह सूर्य भूतों का नाश करते हैं और उन्हें पुनः सृजते हैं। यह सूर्य ही सबका पालन करते हैं, तपते हैं और वर्षा करते हैं।

23. एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥

अर्थ: यह सूर्य सभी जीवों के सोने पर जागते रहते हैं। यह सूर्य ही अग्निहोत्र और उसके फलों के स्वामी हैं।

24. वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभुः॥

अर्थ: यह सूर्य वेदों, यज्ञों और सभी यज्ञों के फलों के स्वामी हैं, और यह समस्त कर्मों के प्रभु हैं।

25. एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥

अर्थ: हे राघव, जो मनुष्य संकट, कठिनाइयों, जंगलों और भय में इस सूर्य का ध्यान करता है, वह कभी दुखी नहीं होता।

26. पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥

अर्थ: एकाग्र मन से इस देवाधिदेव और जगत के स्वामी सूर्य की पूजा करो। इसका तीन बार जप करके तुम युद्ध में विजय प्राप्त करोगे।

27. अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदाऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्॥

अर्थ: हे महाबली राम, इस क्षण तुम रावण का वध करोगे। ऐसा कहकर अगस्त्य मुनि वापस चले गए।

28. एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥

अर्थ: यह सुनकर महातेजस्वी राम का शोक दूर हो गया, और वह प्रसन्न होकर इस स्तोत्र का पाठ करने लगे।

29. आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥

अर्थ: सूर्य का ध्यान करके और इस स्तोत्र का पाठ करके राम ने महान आनंद प्राप्त किया। तीन बार जल पीकर शुद्ध होकर और धनुष धारण करके वीरता से युद्ध के लिए तैयार हो गए।

30. रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्॥

अर्थ: रावण को देखकर राम विजय की इच्छा से उत्साहित हो गए और अपने सारे प्रयास के साथ रावण के वध के लिए तैयार हो गए।

31. अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं
मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा
सुरगणमध्यमगतो वचस्त्वरेति॥

अर्थ: उस समय सूर्य देवता ने राम की ओर देखकर अत्यधिक प्रसन्न होकर राक्षसों के स्वामी रावण के संहार को जानकर देवताओं के मध्य में होकर कहा: “शीघ्र करो!”

आदित्य हृदय स्तोत्र में भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि इस स्तोत्र के पाठ से साहस, आत्मविश्वास और विजय प्राप्त होती है। इसका नियमित पाठ मनुष्य के जीवन में समस्त बाधाओं को दूर करता है और उसे सफलता की ओर अग्रसर करता है।

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