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Chaturthi Shraddha 2025 | चतुर्थी श्राद्ध तिथि, मुहूर्त, विधि और महत्व | PDF

सनातन धर्म में श्राद्ध का अत्यंत पवित्र स्थान है। पितृपक्ष के दिनों में किए जाने वाले श्राद्ध का उद्देश्य अपने पितरों (पूर्वजों) को स्मरण करना, उन्हें तृप्त करना और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करना होता है।
पितृपक्ष के दौरान हर तिथि को विशेष श्राद्ध किया जाता है, जिसे उस तिथि पर दिवंगत हुए पितरों को समर्पित माना जाता है।

चतुर्थी श्राद्ध उस पितर की आत्मा के लिए किया जाता है, जिनका निधन चंद्र मास की चतुर्थी तिथि को हुआ हो। यह दिन परिवारजनों के लिए विशेष होता है क्योंकि इस दिन श्राद्धकर्म करके वे अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना करते हैं।

2. चतुर्थी श्राद्ध क्यों मनाया जाता है?

चतुर्थी श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है। इसके पीछे कई आध्यात्मिक और सामाजिक कारण हैं—

(क) पितृ ऋण की पूर्ति

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, हर जीव तीन प्रकार के ऋण लेकर जन्म लेता है –

  1. देव ऋण (देवताओं के प्रति)
  2. ऋषि ऋण (गुरुजनों और ज्ञान के प्रति)
  3. पितृ ऋण (पूर्वजों के प्रति)

इनमें से पितृ ऋण को चुकाने का सबसे सरल और सशक्त माध्यम श्राद्ध कर्म है।

(ख) आत्मा की शांति

मृत्यु के बाद आत्मा सूक्ष्म लोक में विचरण करती है। श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और वे पितृलोक की ओर अग्रसर होते हैं।

(ग) आशीर्वाद और सुख-समृद्धि

शास्त्रों में कहा गया है –
“पितृ देवा: प्रीतिमाप्नुवन्ति, पितृभ्य: प्रसन्नता सर्वं भवति।”
अर्थात, पितरों की प्रसन्नता से घर-परिवार में सुख-शांति, संतान की उन्नति और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।

(घ) पारिवारिक और सांस्कृतिक परंपरा

श्राद्ध हमारे समाज को परिवार और परंपरा से जोड़ने का कार्य करता है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं बल्कि संस्कार और संस्कृति की निरंतरता का प्रतीक है।

3. चतुर्थी श्राद्ध का महत्व

  • यह दिन खासतौर पर उन पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए है, जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि को हुई थी।
  • चतुर्थी श्राद्ध करने से पितर पितृलोक में प्रसन्न रहते हैं और वंशजों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
  • धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति पितरों की उपेक्षा करता है, उसे जीवन में अनेक बाधाओं, क्लेश और असफलताओं का सामना करना पड़ता है।

4. 2025 में चतुर्थी श्राद्ध कब है?

पंचांग अनुसार, पितृपक्ष चतुर्थी श्राद्ध 2025 में, 10 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा।
इस दिन व्रती को प्रातःकाल स्नान कर संकल्प लेना चाहिए और विधि-विधान से श्राद्धकर्म करना चाहिए।

5. चतुर्थी श्राद्ध की विधि-विधान

(क) प्रातःकाल की तैयारी
  • प्रातः सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • अपने घर या आंगन में कुशा का आसन बिछाएँ और पितरों का स्मरण करते हुए संकल्प लें।
(ख) पितृ तर्पण
  • पवित्र नदी, कुएँ, तालाब या घर में बने जल से पितरों के लिए तर्पण करें।
  • तर्पण के समय पितरों के नाम, गोत्र और तिथि का उच्चारण करें।
(ग) पिंडदान
  • जौ, तिल, चावल और घी से बने पिंड पितरों को अर्पित करें।
  • पिंडदान के समय पितरों के प्रति आभार प्रकट करें।
(घ) ब्राह्मण भोजन और दान
  • ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराएँ और दक्षिणा, वस्त्र, अनाज आदि का दान करें।
  • शास्त्रों में कहा गया है कि ब्राह्मण भोजन से ही पितर तृप्त होते हैं।
(ङ) संतान और कुल कल्याण की कामना
  • श्राद्धकर्म पूर्ण होने के बाद परिवार के सभी सदस्य पितरों का आशीर्वाद लेकर प्रसाद ग्रहण करें।

6. धार्मिक मान्यताएँ और शास्त्रीय संदर्भ

  • मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है।
  • मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में पितरों की आत्माएँ पृथ्वी लोक पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण की प्रतीक्षा करती हैं।
  • यदि इन दिनों श्राद्ध न किया जाए तो पितर अप्रसन्न हो जाते हैं और जीवन में रुकावटें उत्पन्न होती हैं।

7. चतुर्थी श्राद्ध से जुड़े निषेध

श्राद्ध के दिन कुछ कार्य करने से बचना चाहिए—

  1. मांसाहार, शराब और तामसिक भोजन वर्जित है।
  2. किसी भी प्रकार का अशुभ कार्य, विवाद या अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।
  3. श्राद्धकर्म करने वाले को सात्त्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
  4. लोभ, क्रोध और दिखावे से बचकर केवल श्रद्धा भाव से कार्य करना चाहिए।

8. आधुनिक समय में चतुर्थी श्राद्ध का महत्व

आज के समय में भी श्राद्ध का महत्व उतना ही है जितना प्राचीन काल में था।

  • यह हमें हमारी जड़ों और संस्कृति से जोड़ता है।
  • यह हमारे जीवन में संस्कार और कृतज्ञता का भाव जगाता है।
  • यह परिवार को एकजुट रखता है और पूर्वजों के आशीर्वाद से आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित बनाता है

चतुर्थी श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और प्रेम की अभिव्यक्ति है।
इस दिन विधिवत श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

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