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Naraka Chaturdashi | नरक चतुर्दशी पर दीपदान की सही विधि क्या है? | PDF

नरक चतुर्दशी जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस भी कहा जाता है, दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन का महत्व दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का दूसरा दिन है, और इसे विशेष रूप से भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध करके प्रजा को नरक से मुक्ति दिलाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी माना जाता है।

कब है नरक चतुर्दशी

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 30 अक्टूबर को सुबह 11:32 बजे से हो रहा है और इसका समापन 31 अक्टूबर को दोपहर 2:53 बजे पर होगा। नरक चतुर्दशी की पूजा प्रदोष काल (शाम के समय) में की जाती है, इसलिए इसे 30 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा।

इस दिन यम के नाम का दीपक जलाना विशेष महत्व रखता है, और इसे प्रदोष काल में ही जलाया जाना चाहिए। यम दीप जलाने और यम की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 5:30 बजे से 7:02 बजे तक रहेगा। इसी समय में आप यम के नाम का दीपक जलाकर पूजा कर सकते हैं।

कहां जलाना चाहिए यम के नाम का दीपक

मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यम के नाम का दीपक जलाकर व्यक्ति पूरे परिवार के साथ यम यातनाओं से मुक्ति की प्रार्थना करता है। इस दिन सही दिशा में दीप जलाने से परिवार के सदस्यों का अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। यम के नाम का दीपक घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा में जलाना चाहिए, क्योंकि यह दिशा यमराज की मानी गई है। दीपक चार मुख वाला होना चाहिए और इसमें सरसों के तेल का उपयोग करना चाहिए।

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, नरक चतुर्दशी का संबंध राक्षस नरकासुर से है। नरकासुर ने अनेक अत्याचार किए, देवताओं और ऋषियों को परेशान किया, और 16,000 कन्याओं को बंदी बना लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त कराने का संकल्प लिया और नरकासुर का वध किया। इस वध के बाद भगवान कृष्ण ने उन कन्याओं को मुक्त किया और उन्हें सम्मानपूर्वक स्थान दिया। इस दिन को प्रतीकात्मक रूप से “असुरत्व” या “नरक” से मुक्ति का दिन माना जाता है।

नरक चतुर्दशी की पूजा विधि

  1. सुबह जल्दी उठना: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे अभ्यंग स्नान भी कहा जाता है, जिसमें तिल के तेल और चंदन का उपयोग करके शरीर की मालिश की जाती है।
  2. स्नान और उबटन: स्नान के समय उबटन (चंदन, हल्दी, और बेसन का मिश्रण) लगाना शुभ माना जाता है। यह शरीर को पवित्र और शुद्ध करने का प्रतीक है। इस स्नान को करने से बुरे कर्मों से मुक्ति मिलती है।
  3. दीपदान: नरक चतुर्दशी के दिन घर के बाहर दीया जलाया जाता है, जिसे यमराज को समर्पित किया जाता है। इसे “यम दीप” कहते हैं और इसे जलाने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
  4. रंगोली बनाना और घर की सजावट: इस दिन रंगोली बनाकर और घर को सजाकर तैयार किया जाता है ताकि देवी लक्ष्मी का स्वागत हो सके। यह कार्य विशेष रूप से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति के लिए किया जाता है।
  5. प्रसाद चढ़ाना: पूजा के बाद भगवान को प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिसमें मिठाई, फल, और दीप का समर्पण किया जाता है। इसके बाद सभी परिवारजन प्रसाद ग्रहण करते हैं।
  6. संध्या पूजा और दीपदान: शाम को घर के सभी सदस्यों द्वारा दीयों को जलाया जाता है और यमराज को दीप अर्पित किया जाता है। इसे “यम तर्पण” भी कहते हैं। इस दिन के दीपदान का महत्व यह है कि यह मृत्यु के भय को कम करता है और परिवार की सुरक्षा करता है।

नरक चतुर्दशी का महत्व

  • बुराई पर अच्छाई की जीत: यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध करना बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।
  • शरीर और आत्मा की शुद्धि: इस दिन विशेष स्नान और उबटन करने से न केवल शरीर शुद्ध होता है, बल्कि आत्मा भी शुद्ध होती है। यह दिन आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का प्रतीक माना गया है।
  • अकाल मृत्यु से मुक्ति: इस दिन यमराज के नाम दीपदान किया जाता है, जिससे परिवार के सभी सदस्यों को अकाल मृत्यु से रक्षा मिलती है और आयु में वृद्धि होती है।
  • सुख, शांति और समृद्धि: नरक चतुर्दशी के दिन की गई पूजा-अर्चना और दीपदान से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

नरक चतुर्दशी के अन्य नाम और प्रथाएँ

  • छोटी दिवाली: इस दिन को छोटी दिवाली भी कहा जाता है, जो दीपावली के मुख्य दिन से एक दिन पहले आती है।
  • रूप चौदस: इस दिन को सुंदरता और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है। इस दिन विशेष उबटन का प्रयोग करके रूप को निखारने का प्रयास किया जाता है।

नरक चतुर्दशी का त्यौहार हमें संदेश देता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो, सत्य और धर्म की विजय अंत में अवश्य होती है।

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