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नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन माँ दुर्गा के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित है, जो देवी दुर्गा के पहले स्वरूप मानी जाती हैं। “शैलपुत्री” का अर्थ है “शैल (पर्वत) की पुत्री”, और ये हिमालय की पुत्री पार्वती का रूप हैं। शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है, और इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है।
माँ शैलपुत्री का स्वरूप
माँ शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत सौम्य और दिव्य है। वे शांति, शक्ति और सौम्यता का प्रतीक हैं। उनके त्रिशूल से वे सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं और उनके हाथ में स्थित कमल प्रेम और करुणा का प्रतीक है।
माँ शैलपुत्री की पूजा का महत्व
- प्रथम रूप: माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा का पहला रूप हैं, जो नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक हैं। इनकी पूजा करने से शक्ति और साहस प्राप्त होता है।
- हिमालय की पुत्री: पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ शैलपुत्री का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था, जो उन्हें पार्वती के रूप में भी जाना जाता है। पार्वती को शिव की पत्नी के रूप में भी पूजा जाता है।
- पूर्व जन्म: माँ शैलपुत्री पिछले जन्म में सती थीं, जिन्होंने दक्ष प्रजापति के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था। अगले जन्म में वे हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्मी थीं, और शिव से पुनः विवाह किया।
- पूजा विधि: पहले दिन साधक देवी की पूजा शुद्धता और सरलता के साथ करते हैं। माँ शैलपुत्री को सफेद रंग का बहुत महत्व है, और उनकी पूजा में सफेद फूलों का उपयोग होता है। भक्त उनके चरणों में गंगाजल और दूध अर्पित करते हैं, और “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” मंत्र का जप करते हैं।
- लाभ: माँ शैलपुत्री की कृपा से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति, भक्ति, और समर्पण की प्राप्ति होती है। वे आरोग्य, वैभव, और सुख-शांति प्रदान करती हैं।
पूजा का उद्देश्य
माँ शैलपुत्री की पूजा का उद्देश्य है साधक के मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करना ताकि उसे जीवन में मानसिक और शारीरिक स्थिरता प्राप्त हो सके। उनकी उपासना से मूलाधार चक्र की शुद्धि होती है, जो जीवन के मूलभूत आधार का प्रतीक है।
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष विधि से की जाती है। इस दिन पूजा की शुरुआत कलश स्थापना (घटस्थापना) से की जाती है, जिसके बाद माँ शैलपुत्री की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं कैसे माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है और किन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि:
1. कलश स्थापना (घटस्थापना):
- सूर्योदय से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहाँ एक लकड़ी का पाटा रखें।
- पाटे के ऊपर एक साफ कपड़ा बिछाएँ और उस पर मिट्टी की वेदी बनाएं।
- वेदी में जौ या गेहूं बोएं, और उसके बीच में कलश रखें।
- कलश में पानी भरकर उसमें सुपारी, सिक्का, पान का पत्ता और आम के पत्ते रखें।
- कलश के ऊपर नारियल रखें, जिसे लाल कपड़े में लपेटकर मौली से बांधें।
- इसे माँ दुर्गा का प्रतीक मानकर विधिवत पूजन करें।
2. माँ शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित करें:
- माँ शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र को साफ स्थान पर स्थापित करें।
- उनके समक्ष धूप, दीप, पुष्प, गंध, और नैवेद्य (फल, मिठाई, आदि) अर्पित करें।
3. सफेद वस्त्र और सफेद फूल:
- माँ शैलपुत्री का प्रिय रंग सफेद होता है, इसलिए उनकी पूजा में सफेद वस्त्र धारण करें।
- पूजा में सफेद फूल, विशेषकर चमेली, चढ़ाएं।
4. ध्यान और आवाहन (प्रार्थना):
- पूजा के दौरान माँ शैलपुत्री का ध्यान और आवाहन करते हुए उनसे आशीर्वाद की कामना करें। उनके स्वरूप का ध्यान करके पूजा शुरू करें।
5. माँ शैलपुत्री को अर्पित करें:
- माँ शैलपुत्री को गाय के घी का भोग विशेष रूप से लगाया जाता है।
- माता को सफेद फूल और वस्त्र अर्पित करें।
- प्रसाद में आप दूध, फल, और मिठाइयाँ अर्पित कर सकते हैं।
6. नवरात्रि व्रत और आहार नियम
- पहले दिन व्रत रखने वाले भक्त केवल फलाहार करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से बचें।
- केवल सेंधा नमक का प्रयोग करें और हल्का भोजन करें।
- दिन में एक बार भोजन करना उत्तम माना जाता है।
मंत्र
मंत्र उच्चारण और पूजा: पूजा के दौरान निम्न मंत्रों का उच्चारण करें:
1. ध्यान मंत्र (माँ शैलपुत्री का ध्यान करते हुए):
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
2. स्तोत्र मंत्र (माँ शैलपुत्री का स्तवन करते हुए):
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
3. मूल मंत्र (माँ शैलपुत्री को समर्पित प्रमुख मंत्र):
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
4. सप्तशती मंत्र (दुर्गा सप्तशती के श्लोक):
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ शैलपुत्री की आरती
- आरती: पूजा के अंत में माँ शैलपुत्री की आरती करें। आरती के समय घी का दीपक जलाएं और आरती गाएं।
- प्रसाद वितरण: आरती के बाद सभी भक्तों में प्रसाद वितरित करें।
माँ शैलपुत्री की पूजा के लाभ
माँ की उपासना से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह साधक को आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक स्थिरता, और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं।
1. आत्मबल और संकल्प शक्ति में वृद्धि
माँ शैलपुत्री अडिग संकल्प और शक्ति की देवी हैं। इनकी पूजा से मनोबल बढ़ता है और व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होता है।
2. पारिवारिक सुख और समृद्धि
जो लोग परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं, उन्हें माँ की उपासना करनी चाहिए। इनकी कृपा से पारिवारिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है।
3. शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति
माँ शैलपुत्री की कृपा से मानसिक तनाव, अवसाद और चिंता दूर होती है। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं और बीमारियों से बचाती हैं।
4. विवाह और दांपत्य जीवन में शुभता
कुंवारी कन्याओं के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। इससे विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुखद दांपत्य जीवन प्राप्त होता है।
5. आध्यात्मिक उन्नति
जो व्यक्ति आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए साधना कर रहे हैं, उनके लिए माँ शैलपुत्री की उपासना बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करती हैं।