
Nirjala Ekadashi
निर्जला एकादशी, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है। यह साल में दो बार आती है, लेकिन ज्येष्ठ मास वाली निर्जला एकादशी को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत में, भक्त सूर्योदय से सूर्यास्त तक न केवल अन्न, बल्कि जल का भी त्याग करते हैं।
इस महीने क्यों महत्वपूर्ण है?
- ज्येष्ठ मास को देवताओं का महीना माना जाता है। इस महीने में किए गए व्रत और पूजा-पाठ का फल अधिक होता है।
- निर्जला एकादशी, पापों का नाश करने और पुण्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।
- भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए भी यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस दिन क्या करें:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
- गायत्री मंत्र का जाप करें।
- दान-पुण्य करें।
- धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें।
- ध्यान और योग का अभ्यास करें।
इस दिन क्या न करें:
- जल ग्रहण न करें।
- अन्न का सेवन न करें।
- लहसुन, प्याज और मांसाहारी भोजन का सेवन न करें।
- क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि नकारात्मक भावों से दूर रहें।
- किसी से झगड़ा न करें।
इस व्रत के लाभ:
- पापों का नाश होता है और पुण्य प्राप्त होता है।
- भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- मन और शरीर शुद्ध होता है।
- रोगों का नाश होता है।
- आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अतिरिक्त जानकारी:
- यदि आप निर्जला एकादशी का व्रत रखने में असमर्थ हैं, तो आप फलाहार का व्रत रख सकते हैं।
- यदि आप किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो व्रत रखने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- व्रत के दौरान, यदि आपको अत्यधिक प्यास लगती है, तो आप थोड़ा सा गुनगुना पानी पी सकते हैं।
यह भी ध्यान रखें कि व्रत का मुख्य उद्देश्य आत्मिक शुद्धिकरण और आत्म-नियंत्रण प्राप्त करना है। केवल तभी व्रत का वास्तविक लाभ प्राप्त होता है।