।। दोहा ।।
बन्दहुँ वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान।
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण।
सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार।
बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार।
अर्थ – मैं वीणा वादिनी माँ सरस्वती व भगवान गणेश का ध्यान करता हूँ। माता राधा व भगवान श्रीकृष्ण मेरा कल्याण करें। सभी देवताओं, गुरुओं व अपने पिता का भी मैं ध्यान करता हूँ। इसके उपरांत मैं अपनी बुद्धि के अनुसार गिरिराज चालीसा का पाठ करता हूँ।
।। चौपाई ।।
जय हो जय बंदित गिरिराजा, ब्रज मण्डल के श्री महाराजा।
विष्णु रूप तुम हो अवतारी, सुन्दरता पै जग बलिहारी।
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें, सुर मुनि गण दरशन कूं आवें।
शांत कन्दरा स्वर्ग समाना, जहाँ तपस्वी धरते ध्याना।
अर्थ – हे गिरिराज देव और ब्रज मंडल के महाराज!! आपकी जय हो। आप तो स्वयं भगवान विष्णु के एक रूप हैं और आपकी सुन्दरता पर सब मारे जा रहे हैं। आपका शिखर सोने के समान बहुत ही सुन्दर है जिसके दर्शन करने सभी देवता, ऋषि-मुनि, संत इत्यादि आते हैं। आपका क्षेत्रफल बहुत ही शांत है जहाँ पर तपस्वी लोग ध्यान करते हैं।
द्रोणगिरि के तुम युवराजा, भक्तन के साधौ हौ काजा।
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये, जोर विनय कर तुम कूँ लाये।
मुनिवर संघ जब ब्रज में आये, लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये।
विष्णु धाम गौलोक सुहावन, यमुना गोवर्धन वृन्दावन।
अर्थ – आप द्रोणगिरि के युवराज हैं और अपने भक्तों के सभी कार्य पूरे कर देते हैं। ऋषि पुलस्त्य के द्वारा ही आपको यहाँ तक लाया गया था। आप उनके साथ इस ब्रजभूमि पर आकर ठहर गए थे। यह एक विष्णु धाम है जहाँ गाय माता भी निवास करती है। यहीं पर पवित्र यमुना नदी बहती है और इसे वृन्दावन भी कहते हैं।
देख देव मन में ललचाये, बास करन बहु रूप बनाये।
कोउ बानर कोउ मृग के रूपा, कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा।
आनन्द लें गोलोक धाम के, परम उपासक रूप नाम के।
द्वापर अंत भये अवतारी, कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी।
अर्थ – इस पावन धरा को देख कर तो स्वर्ग से सभी देवताओं का मन भी ललचाने लगा था और वे कई तरह के रूप धर कर यहाँ निवास करने आ गए थे। कोई बंदर बन कर आया तो कोई हिरन बन कर, किसी ने वृक्ष का रूप ले लिया तो कोई लता बन गया। सभी देवतागण इस पावन धरा का आनंद ले रहे थे और तभी द्वापर युग के अंत समय के आसपास स्वयं भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने यहाँ जन्म लिया।
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी, पूजा करिबे की मन ठानी।
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई, गोवर्द्धन पूजा करवाई।
पूजन कूँ व्यंजन बनवाये, ब्रजवासी घर घर ते लाये।
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी, सहस भुजा तुमने कर लीनी।
अर्थ – श्रीकृष्ण की महिमा तो अपरंपार है और उन्होंने यहाँ के निवासियों को इंद्र देव की पूजा करने की बजाये गिरिराज पर्वत की पूजा करने को कहा। आपने सभी ब्रजवासियों को बुलाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करवायी। गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को हरेक ब्रजवासी अपने घर से पकवान बनाकर लेकर आया और उनकी पूजा की।
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में, माँग माँग के भोजन पावें।
लखि नर नारि मन हरषावें, जै जै जै गिरिवर गुण गावें।
देवराज मन में रिसियाए, नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए।
छाया कर ब्रज लियौ बचाई, एकउ बूँद न नीचे आई।
अर्थ – यह देखकर आप उस कृष्ण पूजा में स्वयं प्रकट हो गए और भक्तों से माँग-माँग कर भोजन करने लगे। यह देख कर ब्रजवासी बहुत ही प्रसन्न हुए और आपके ही गुण गाने लगे। यह दृश्य देख कर स्वर्ग में बैठे इंद्र देव बहुत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज भूमि को नष्ट करने का निर्णय ले लिया। इसके बाद ब्रज भूमि पर बहुत तेज वर्षा होने लगी लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी एक ही ऊँगली पर संपूर्ण गोवर्धन पर्वत को उठा लिया जिसके नीचे वर्षा की एक बूँद तक नहीं आ पायी।
सात दिवस भई बरसा भारी, थके मेघ भारी जल धारी।
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे, नमो नमो ब्रज के रखवारे।
करि अभिमान थके सुरसाई, क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई।
त्राहि माम् मैं शरण तिहारी, क्षमा करो प्रभु चूक हमारी।
अर्थ – इंद्र देव ने ब्रज भूमि पर लगातार सात दिनों तक घनघोर वर्षा की लेकिन इस दौरान श्रीकृष्ण ने एकटक अपने नाखून पर गिरिराज पर्वत को उठाये रखा। सात दिनों के पश्चात इंद्र देव थक गए और वर्षा रुक गयी। ब्रज क्षेत्र की रक्षा करने पर, हे श्रीकृष्ण! आपको हमारा बार-बार नमन है। इंद्र देव का घमंड अब चकनाचूर हो चुका था और वे भाग कर श्रीकृष्ण की शरण में गए और उनसे क्षमा याचना की और उनका गुणगान किया।
बार बार बिनती अति कीनी, सात कोस परिकम्मा दीनी।
संग सुरभि ऐरावत लाये, हाथ जोड़ कर भेंट गहाए।
अभय दान पा इन्द्र सिहाये, करि प्रणाम निज लोक सिधाये।
जो यह कथा सुनैं चित लावें, अन्त समय सुरपति पद पावैं।
अर्थ – इंद्र देव ने आपके पास आकर अपनी भूल की क्षमा याचना की और गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की। वे अपने साथ सुरभि व ऐरावत हाथी भी लाये थे और श्रीकृष्ण के सामने हाथ जोड़ कर उन्हें कई तरह की वस्तुएं उपहार स्वरुप भेंट चढ़ाई थी। श्रीकृष्ण ने इंद्र देव को क्षमा प्रदान कर दी और इससे प्रसन्न होकर इंद्र देव पुनः अपने लोक को चले गए। जो भी भक्तगण यह कथा सुनता है, उसे अपने अंत समय में परम सुख की प्राप्ति होती है।
गोवर्द्धन है नाम तिहारौ, करते भक्तन कौ निस्तारौ।
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें, तिनके दुःख दूर ह्वै जावे।
कुण्डन में जो करें आचमन, धन्य धन्य वह मानव जीवन।
मानसी गंगा में जो न्हावें, सीधे स्वर्ग लोक कूँ जावें।
अर्थ – आपका नाम गोवर्धन है और आप अपने भक्तों के सभी कार्यों को पूरा कर देते हैं। जो भी व्यक्ति आपका दर्शन कर लेता है, आप उसके सभी दुःख दूर कर देते हैं। जो आपके कुंड में आचमन करता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। जो मानसी गंगा में नहा लेता है, उसे सीधा स्वर्ग लोक मिलता है।
दूध चढ़ा जो भोग लगावें, आधि व्याधि तेहि पास न आवें।
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें, मन वांछित फल निश्चय पावें।
जो नर देत दूध की धारा, भरौ रहे ताकौ भण्डारा।
करें जागरण जो नर कोई, दुख दरिद्र भय ताहि न होई।
अर्थ – जो आपको दूध का भोग लगाता है, उसके सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। जो आपको जल, फल व तुलसी चढ़ाता है, उसे इच्छा अनुसार फल मिलता है। जो आपके ऊपर दूध का अभिषेक करता है, आप उसके घर को धन-सम्पदा से भर देते हो, जो आपके नाम का जागरण अपने घर में आयोजित करवाता है, आप उसके सभी दुःख, निर्धनता, भय इत्यादि को दूर कर देते हैं।
‘श्याम’ शिलामय निज जन त्राता, भक्ति मुक्ति सरबस के दाता।
पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावें, ताकूँ पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें।
दण्डौती परिकम्मा करहीं, ते सहजहिं भवसागर तरहीं।
कलि में तुम सम देव न दूजा, सुर नर मुनि सब करते पूजा।
अर्थ – आप सभी मनुष्यों के दुखों को दूर करने वाले और उन्हें मुक्ति प्रदान करने वाले हो। जो कोई व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की इच्छा से आपके पास आता है, आप उसकी इच्छा को पूर्ण कर देते हो। जो आपकी परिक्रमा करता है, आप उसे भव सागर पार करा देते हो। कलयुग में आपके समान कोई दूसरा देवता नहीं है और देवता, मनुष्य, ऋषि-मुनि सभी आपकी पूजा करते हैं।
।। दोहा ।।
जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय।
सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करैं सहाय।
क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज।
श्याम बिहारी शरण में, गोवर्धन महाराज।
अर्थ – जो भी व्यक्ति यह चालीसा पढ़ता है या शुद्ध मन से इसे सुनता है, तो यह बात सत्य है कि उस पर गिरिराज महाराज की कृपा होती है। हे गिरिराज महाराज! आप हमारे सभी तरह के अपराध क्षमा कर दीजिये। मैं श्याम बिहारी आपकी शरण में हूँ।
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