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Shri Surya Dev Aarti | सूर्य देव आरती | PDF

Shri Surya Dev Aarti

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।|1||

अर्थ: सूर्य भगवान को प्रणाम, दिनकर भगवान को जयकारा।

व्याख्या: आरती की शुरुआत सूर्य देव की आराधना से होती है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत हैं।

जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।|2||

अर्थ: आप जगत के नेत्र हैं; आप त्रिगुण (सत्त्व, रजस, तामस) का स्वरूप हैं।

व्याख्या: सूर्य देव को सर्वज्ञ (सभी को देखने वाले) और ब्रह्मांड के गुणों का प्रतीक माना जाता है।

धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।|3||

अर्थ: सभी लोग आपका ध्यान करते हैं; सूर्य भगवान को जयकारा।

व्याख्या: सभी प्राणी आपके प्रकाश और शक्ति की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं।

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी।|4||

अर्थ: आप के सारथी अरुण हैं और आप श्वेत कमल धारण करते हैं।

व्याख्या: अरुण सूर्य का रथ चलाते हैं, और यह श्वेत कमल आपकी दिव्यता का प्रतीक है।

तुम चार भुजाधारी।|5||

अर्थ: आप चार भुजाओं वाले हैं।

व्याख्या: यह आपके दिव्य रूप को दर्शाता है, जो चार भुजाओं के साथ सम्पूर्णता को प्रदर्शित करता है।

अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे।|6||

अर्थ: आपके पास सात अश्व हैं, जो करोड़ों किरणें फैलाते हैं।

व्याख्या: यह सूर्य की किरणों के सात रंगों का प्रतीक है, जो उसकी महानता को दर्शाता है।

तुम हो देव महान।|7||

अर्थ: आप महान देवता हैं।

व्याख्या: सूर्य देव को एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते।|8||

अर्थ: जब आप सुबह के समय उगते हैं।

व्याख्या: यह सूर्योदय के समय की महिमा को बताता है, जब सूरज की किरणें दुनिया को प्रकाशित करती हैं।

सब तब दर्शन पाते।|9||

अर्थ: तब सभी लोग आपके दर्शन करते हैं।

व्याख्या: सूर्योदय से सभी जीवों को सुख और आनंद मिलता है।

फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा।|10||

अर्थ: आप उजाला फैलाते हैं, तब सारा जग जागता है।

व्याख्या: सूर्य देव की रोशनी से संसार जागृत होता है।

करे सब तब गुणगान।|11||

अर्थ: तब सभी लोग आपकी प्रशंसा करते हैं।

व्याख्या: सूरज की रोशनी आने पर लोग उसकी महिमा गाते हैं।

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते।|12||

अर्थ: संध्या के समय भगवान अस्त होते हैं।

व्याख्या: यह सूर्य के अस्त होने का वर्णन करता है, जो दिन के अंत को दर्शाता है।

गोधन तब घर आते।|13||

अर्थ: तब गोधन घर लौटते हैं।

व्याख्या: यह दिन के काम के अंत का संकेत है, जब गायें घर लौटती हैं।

गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में।|14||

अर्थ: गोधूलि बेला में, हर घर और आंगन में।

व्याख्या: यह समय परिवारों के एकत्रित होने और मिलन का होता है।

हो तव महिमा गान।|15||

अर्थ: आपकी महिमा गाई जाती है।

व्याख्या: गोधूलि बेला में भी लोग सूर्य देव की महिमा गाते हैं।

देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते।|16||

अर्थ: देवता, दानव, मनुष्य और ऋषि-मुनि आपकी आराधना करते हैं।

व्याख्या: सूर्य देव सभी प्राणियों द्वारा पूजे जाते हैं, चाहे वे किसी भी श्रेणी में हों।

आदित्य हृदय जपते।|17||

अर्थ: वे आदित्य हृदय का जप करते हैं।

व्याख्या: आदित्य हृदय एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो सूर्य की आराधना में किया जाता है।

स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी।|18||

अर्थ: यह स्तोत्र मंगलकारी है और इसकी रचना अद्वितीय है।

व्याख्या: इस आरती को एक विशेष और लाभकारी प्रार्थना के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

दे नव जीवनदान।|19||

अर्थ: नई जीवन का आशीर्वाद दें।

व्याख्या: सूर्य देव से जीवन, स्वास्थ्य और ऊर्जा की प्रार्थना की जाती है।

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार।|20||

अर्थ: आप त्रिकाल के रचयिता हैं; आप जग के आधार हैं।

व्याख्या: यह सूर्य देव की शाश्वत और अनिवार्यता को दर्शाता है।

महिमा तब अपरम्पार।|21||

अर्थ: आपकी महिमा अपार है।

व्याख्या: सूर्य देव की शक्ति और महिमा असीमित है।

प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते।|22||

अर्थ: आप अपने भक्तों को जीवन शक्ति प्रदान करते हैं।

व्याख्या: यह उनके प्रति आभार व्यक्त करता है, जो जीवन और ऊर्जा प्रदान करते हैं।

बल, बुद्धि और ज्ञान।|23||

अर्थ: बल, बुद्धि और ज्ञान।

व्याख्या: सूर्य देव से इन तीन महत्वपूर्ण गुणों का आशीर्वाद मांगा जाता है।

भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं।|24||

अर्थ: आप सभी प्राणियों के प्राण हैं, चाहे वे स्थलीय, जलचर या आकाशीय हों।

व्याख्या: यह संकेत करता है कि सूर्य देव सभी जीवों के लिए आवश्यक हैं।

सब जीवों के प्राण तुम्हीं।|25||

अर्थ: आप सभी जीवों के जीवन का स्रोत हैं।

व्याख्या: यह सूर्योदय के महत्व को दोहराता है।

वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने।|26||

अर्थ: वेद और पुराण आपके गुणों का वर्णन करते हैं; सभी धर्म आपको मानते हैं।

व्याख्या: यह दिखाता है कि सभी धार्मिक ग्रंथों में सूर्य देव का महत्व है।

तुम ही सर्वशक्तिमान।|27||

अर्थ: आप सर्वशक्तिमान हैं।

व्याख्या: सूर्यो देव की शक्ति और महत्व को दर्शाता है।

पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल।|28||

अर्थ: दिशाएं आपकी पूजा करती हैं; दस दिक्पाल आपकी आराधना करते हैं।

व्याख्या: हर दिशा सूर्य देव का सम्मान करती है।

तुम भुवनों के प्रतिपाल।|29||

अर्थ: आप संसार के रक्षक हैं।

व्याख्या: यह संकेत करता है कि सूर्य देव सृष्टि की रक्षा करते हैं।

ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी।|30||

अर्थ: ऋतुएं आपकी दासी हैं; आप शाश्वत और अविनाशी हैं।

व्याख्या: यह बताता है कि सूर्य देव का प्रकाश ऋतुओं को नियंत्रित करता है।

शुभकारी अंशुमान।|31||

अर्थ: आप शुभकारी सूर्य हैं।

व्याख्या: अंत में, सूर्य देव को शुभता का प्रतीक माना जाता है।

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।|32||

अर्थ: सूर्य भगवान को जयकारा, दिनकर भगवान को जय।

व्याख्या: आरती का अंत सूर्य देव की महिमा का पुनर्निर्माण करते हुए होता है।

जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।|33||

अर्थ: आप जगत के नेत्र हैं; आप त्रिगुण का स्वरूप हैं।

व्याख्या: यह पुनः सूर्य देव की दिव्यता का प्रमाण है।

धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।|34||

अर्थ: सब लोग आपका ध्यान करते हैं; सूर्य भगवान को जयकारा।

व्याख्या: यह अंत में फिर से सूर्य देव की महिमा की पुष्टि करता है।