Press ESC to close

VedicPrayersVedicPrayers Ancient Vedic Mantras and Rituals

Vat Savitri Vrat | वट सावित्री व्रत: पति की लंबी उम्र के लिए तप और श्रद्धा का पर्व | PDF

वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह व्रत विशेषकर विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और परिवार की भलाई के लिए करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है, जो आमतौर पर मई या जून के महीने में आती है। कुछ स्थानों पर इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा को भी मनाया जाता है।

इस व्रत का नाम दो चीजों से जुड़ा है—वट वृक्ष (बरगद का पेड़) और सावित्री, जो एक आदर्श पतिव्रता स्त्री मानी जाती हैं। सावित्री की कथा इस व्रत का मूल आधार है जिसमें उन्होंने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापिस ले लिए थे, अपने तप, साहस और चातुर्य से।

वट सावित्री व्रत क्यों रखा जाता है?

यह व्रत सावित्री के आदर्श पतिव्रता रूप की स्मृति में मनाया जाता है। महिलाएँ यह व्रत रखकर सावित्री जैसी नारी बनने की प्रेरणा लेती हैं—जो अपने धर्म, संकल्प और पति के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती हैं।

इस व्रत को रखने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता है:

  • पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करना
  • विवाहिक जीवन में सुख-शांति बनाए रखना
  • परिवार में समृद्धि और उन्नति की कामना
  • स्वयं को एक आदर्श गृहिणी और नारी के रूप में विकसित करना

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत का आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत बड़ा महत्व है:

  1. आध्यात्मिक महत्व:
    यह व्रत आत्मबल, भक्ति और संयम का प्रतीक है। सावित्री की तरह नारी अपने साहस और संकल्प से बड़े से बड़ा संकट भी पार कर सकती है।
  2. सांस्कृतिक महत्व:
    यह व्रत भारतीय संस्कृति में स्त्री की भूमिका, समर्पण और शक्तिशाली छवि को प्रस्तुत करता है। यह महिलाओं को अपने दायित्वों और अधिकारों का अहसास कराता है।
  3. पारिवारिक महत्व:
    स्त्री परिवार की धुरी होती है। उसका स्वास्थ्य, संकल्प और भक्ति पूरे परिवार को ऊर्जा देता है। यह व्रत पारिवारिक सामंजस्य और प्रेम को बढ़ाता है।
  4. प्राकृतिक महत्व:
    वट वृक्ष की पूजा करना पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह वृक्ष ऑक्सीजन देने वाला, छायादार और जीवनदायी माना गया है।

वट सावित्री व्रत करने की विधि

  1. व्रत का संकल्प:
    सुबह स्नान करके साफ साड़ी पहनकर व्रत का संकल्प लें।
  2. वट वृक्ष की पूजा:
    वट वृक्ष के पास जाकर उसकी जड़ में जल चढ़ाएं, हल्दी-कुमकुम लगाएं, और रोली, मौली, फूल, फल आदि चढ़ाएं।
  3. धागा बांधना:
    वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए 7 या 108 बार धागा (कच्चा सूत) लपेटा जाता है। यह पति-पत्नी के अटूट बंधन का प्रतीक है।
  4. व्रत कथा का पाठ:
    वट सावित्री व्रत कथा का श्रद्धा पूर्वक पाठ किया जाता है।
  5. भोजन व ब्राह्मण भोजन:
    दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को फलाहार किया जाता है और किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर दान दिया जाता है।

वट सावित्री व्रत के लाभ

  • पति की दीर्घायु व निरोगी जीवन
  • वैवाहिक जीवन में सुख-शांति
  • संतान सुख की प्राप्ति
  • स्त्री के आत्मबल और मानसिक शक्ति में वृद्धि
  • जीवन में संकटों से उबरने की शक्ति
  • व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है
  • पवित्रता, संयम और साधना का अभ्यास
  • महिलाओं में सहनशीलता और आत्मनियंत्रण की वृद्धि

वट सावित्री व्रत कथा 

प्राचीन काल में राजा अश्वपत नामक एक राजा था। उनकी पत्नी का नाम मालवती था। कई वर्षों तक संतान प्राप्त न होने के बाद उन्होंने पुत्री की प्राप्ति के लिए कई व्रत-उपवास किए। अंततः उन्हें एक दिव्य कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम सावित्री रखा गया।

सावित्री अत्यंत रूपवती, बुद्धिमान और धर्मपरायण थी। विवाह योग्य होने पर उसने स्वयं सत्यवान नामक राजकुमार को वर रूप में चुना। सत्यवान एक वनवासी और तपस्वी राजा द्युमत्सेन का पुत्र था जो अपनी राज्य से निष्कासित होकर वन में निवास कर रहा था।

जब सावित्री ने सत्यवान को अपना पति चुना, तब नारद मुनि ने बताया कि सत्यवान बहुत धर्मात्मा है परंतु उसकी आयु बहुत कम है—वह विवाह के एक वर्ष बाद ही मृत्यु को प्राप्त होगा।

यह सुनकर भी सावित्री ने अपने निर्णय से पीछे हटने से इनकार कर दिया और सत्यवान से विवाह कर लिया। विवाह के बाद वह अपने ससुराल गई और वन में रहकर अपने सास-ससुर की सेवा और पति की सेवा करने लगी।

विवाह के एक वर्ष पश्चात जब वह दिन आया, जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, तो सावित्री ने उपवास रखकर वट वृक्ष के नीचे जाकर ध्यान किया। उसी दिन सत्यवान लकड़ियाँ काटने जंगल गया, सावित्री भी उसके साथ गई। दोपहर के समय सत्यवान के सिर में पीड़ा हुई और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उसकी मृत्यु हो गई।

तभी यमराज, मृत्यु के देवता, वहाँ आए और सत्यवान के प्राण लेकर चलने लगे। सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने उसे कई बार रोका और कहा कि वह अपने धर्म का पालन कर रही है इसलिए कोई वरदान मांग सकती है लेकिन वापस न आए।

सावित्री ने पहले वर में अपने सास-ससुर की नेत्र ज्योति वापस मांगी, जो यमराज ने दे दी। दूसरे वरदान में उसने अपने ससुर को राज्य वापसी दिलाने का वर मांगा, वह भी दे दिया गया। तीसरे वरदान में उसने स्वयं को सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान मांग लिया। यह सुनकर यमराज चौंक गए क्योंकि बिना पति के वह यह वरदान पूरा नहीं कर सकती थीं।

इस प्रकार अपनी बुद्धिमत्ता और धर्मपालन के कारण सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण पुनः प्राप्त कर लिए।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि नारी अगर संकल्पित हो तो वह मृत्यु जैसे दैवीय संकट को भी टाल सकती है। सावित्री की दृढ़ता, समर्पण और पतिव्रता धर्म की प्रेरणा से ही यह व्रत प्रचलित हुआ।

वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय नारी की शक्ति, प्रेम और तपस्या का प्रतीक है। यह व्रत महिलाओं को आत्मबल, धैर्य और अपने परिवार के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है। सावित्री जैसे गुणों को आत्मसात करना आज की नारी के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है जितना प्राचीन काल में था।

इस व्रत के माध्यम से भारतीय संस्कृति में नारी की गरिमा, शक्ति और आदर्श जीवनशैली का दर्शन होता है।

Stay Connected with Faith & Scriptures

"*" आवश्यक फ़ील्ड इंगित करता है

declaration*
यह फ़ील्ड सत्यापन उद्देश्यों के लिए है और इसे अपरिवर्तित छोड़ दिया जाना चाहिए।