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Shani Pradosh Vrat | शनि प्रदोष व्रत: शनि दोष से मुक्ति का सरल उपाय | PDF

शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) एक विशेष प्रकार का व्रत है जो हिंदू धर्म में भगवान शिव और शनि देव को समर्पित है। यह व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है, लेकिन जब यह व्रत शनिवार को पड़ता है, तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है।

यह व्रत जीवन में शनि ग्रह के प्रभाव को शांत करने, शनि दोष से मुक्ति पाने, और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। हिंदू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि को कर्मों का न्यायाधीश माना जाता है। उनके दुष्प्रभाव से जीवन में बाधाएं, परेशानियां और दुख आते हैं। शनि प्रदोष व्रत इन बाधाओं को दूर करने और सौभाग्य लाने में सहायक माना जाता है।

शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव और शनि देव की उपासना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। साल 2024 का अंतिम शनि प्रदोष व्रत 28 दिसंबर 2024, शनिवार को रखा जाएगा।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

    1. शनि दोष से मुक्ति
      शनि देव को कर्म और न्याय का देवता माना जाता है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह अशुभ स्थिति में होता है, तो जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शनि प्रदोष व्रत के माध्यम से शनि देव को प्रसन्न किया जा सकता है।
    2. भगवान शिव की कृपा
      इस व्रत के दौरान भगवान शिव की पूजा की जाती है। भगवान शिव को “त्रिपुरारी” कहा जाता है, जो सभी ग्रहों के अधिपति हैं। उनकी आराधना से सभी ग्रह दोष शांत होते हैं।
    3. धन, स्वास्थ्य और सुख-शांति
      मान्यता है कि शनि प्रदोष व्रत करने से जीवन में धन, स्वास्थ्य, और सुख-शांति का वास होता है। यह व्रत व्यक्ति के पापों को नष्ट करता है और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
    4. कर्म सुधार
      शनि देव व्यक्ति के कर्मों के आधार पर फल देते हैं। इस व्रत से व्यक्ति अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकता है और अपने जीवन को सुधार सकता है।
    5. रोगों और बाधाओं से मुक्ति
      यह व्रत शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। भगवान शिव और शनि देव की कृपा से व्यक्ति के जीवन की सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

शनि प्रदोष व्रत की पूजन विधि

1. व्रत की तैयारी

  • शनिवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • भगवान शिव और शनि देव की पूजा करने का संकल्प लें।
  • व्रत के दौरान सात्विक भोजन का पालन करें या निर्जल व्रत रखें।

2. पूजन सामग्री

  • शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए गंगाजल, दूध, दही, शहद, और बेलपत्र।
  • शनि देव की पूजा के लिए सरसों का तेल, काले तिल, और नीले फूल।
  • धूप, दीप, चंदन, अक्षत (चावल), और फल।

3. पूजा का समय

  • शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है। यह समय सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे पहले और 1.5 घंटे बाद तक रहता है।

4. पूजा विधि

  • पूजा स्थान को साफ करें और भगवान शिव एवं शनि देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, और बेलपत्र चढ़ाएं।
  • शनि देव को सरसों का तेल और काले तिल अर्पित करें।
  • धूप और दीप जलाकर पूजा आरंभ करें।
  • “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
  • “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का जाप 108 बार करें।
  • शिव पुराण और शनि स्तोत्र का पाठ करें।

5. कथा का श्रवण

  • शनि प्रदोष व्रत कथा सुनना या पढ़ना व्रत का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस कथा में भगवान शिव और शनि देव से जुड़ी घटनाएं और उनके चमत्कारिक प्रभावों का वर्णन किया जाता है।

6. आरती और प्रसाद

  • पूजा के अंत में भगवान शिव और शनि देव की आरती करें।
  • प्रसाद वितरण करें और व्रत का पालन करें।

शनि प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है, एक नगर में एक सेठ रहते थे, जो धन-दौलत और वैभव से भरपूर थे। सेठ जी अत्यंत दयालु और परोपकारी थे। उनके दरवाजे से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद करते और दान-दक्षिणा देने में अग्रणी रहते थे। लेकिन, दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उनकी पत्नी स्वयं एक गहरी पीड़ा से गुजर रहे थे। उनके जीवन का सबसे बड़ा दुःख यह था कि उनके पास संतान नहीं थी।

सेठ और उनकी पत्नी ने इस दुःख से उबरने और ईश्वर की कृपा पाने के लिए तीर्थयात्रा पर जाने का निर्णय किया। अपनी जिम्मेदारियां सेवकों को सौंपकर, वे तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। नगर के बाहर निकलते ही, उन्होंने एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि में लीन एक तेजस्वी साधु को देखा। उन्होंने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर अपनी यात्रा आरंभ करें।

दोनों साधु के समीप जाकर हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम हो गई और फिर रात भी बीत गई, लेकिन साधु समाधि से बाहर नहीं आए। इसके बावजूद, सेठ और उनकी पत्नी ने धैर्य बनाए रखा और हाथ जोड़कर वहीं बैठे रहे।

अगले दिन सुबह, जब साधु ने अपनी समाधि समाप्त की, तो सेठ और उनकी पत्नी को अपने सामने देखकर मन्द-मन्द मुस्कराए। उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, “वत्स, मैं तुम्हारे अंतर्मन की व्यथा समझ गया हूं। तुम्हारा धैर्य और भक्ति मुझे अत्यंत प्रसन्न कर रहे हैं।” साधु महाराज ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत की विधि बताई और उसका महत्व समझाया।

तीर्थयात्रा के बाद, सेठ और उनकी पत्नी अपने घर लौट आए और साधु द्वारा बताई गई विधि के अनुसार, नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे। समय बीतने के साथ, उनकी भक्ति और श्रद्धा रंग लाई। सेठ की पत्नी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।

प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके जीवन का अंधकार समाप्त हो गया। उनका घर खुशियों से भर गया और वे आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

शनि प्रदोष व्रत के नियम

  1. व्रतधारी को दिनभर ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करना चाहिए।
  2. झूठ बोलने, क्रोध करने और बुरे कर्मों से बचना चाहिए।
  3. व्रत के दौरान केवल फलाहार ग्रहण करें या निर्जल रहें।
  4. पूजन सामग्री शुद्ध होनी चाहिए और पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करनी चाहिए।

शनि प्रदोष व्रत के लाभ

शनि दोष का निवारण

  • कुंडली में शनि की साढ़े साती या ढैया का प्रभाव हो, तो यह व्रत उसे शांत करता है।

कष्टों से मुक्ति

  • इस व्रत से जीवन की सभी परेशानियां और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

आध्यात्मिक उन्नति

  • यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और व्यक्ति को भगवान के निकट लाता है।

धन, वैभव और समृद्धि

  • शनि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में धन, वैभव और समृद्धि आती है।

रोगों से छुटकारा

  • यह व्रत शारीरिक और मानसिक रोगों को समाप्त करता है।

शनि प्रदोष व्रत में ध्यान देने योग्य बातें

  1. व्रत के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करें और सरसों का तेल चढ़ाएं।
  2. जरूरतमंदों को दान दें, विशेषकर काले तिल, काले कपड़े, और लोहे से बनी वस्तुएं।
  3. क्रोध, अहंकार और बुरी संगत से दूर रहें।
  4. शनि देव और भगवान शिव की आराधना के दौरान मन को शांत और स्थिर रखें।

शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव और शनि देव की कृपा पाने का एक प्रभावशाली माध्यम है। यह व्रत जीवन में आने वाली बाधाओं को समाप्त करता है और सौभाग्य लाता है। यदि इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाए, तो व्यक्ति को अपने जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

प्रदोष व्रत केवल धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि यह आत्म-शुद्धि और मन की शांति का भी मार्ग है। यह व्रत जीवन में कर्मों की महत्ता को समझने और सकारात्मक दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है।