
भारत उत्सवों की भूमि है। यहाँ हर पर्व का अपना विशेष महत्व और उद्देश्य होता है। इन्हीं पर्वों में से एक है गणेश चतुर्थी, जिसे विघ्नहर्ता श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आने वाला यह त्यौहार विशेष रूप से महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आज यह पर्व पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा भी धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है?
भगवान गणेश का जन्मोत्सव
मान्यता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। देवी पार्वती ने अपने शरीर की उबटन से गणेश जी की रचना की और उन्हें द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया। जब भगवान शिव घर आए तो गणेश जी ने उन्हें भीतर प्रवेश नहीं करने दिया। क्रोधित होकर शिवजी ने उनका सिर काट दिया। बाद में देवी पार्वती के रोष और दुख को देखकर भगवान शिव ने उन्हें पुनर्जीवित किया और हाथी का सिर लगाकर गणेश जी को नया जीवन दिया। तभी से उन्हें ‘गजानन’ कहा जाने लगा।
विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता (संकट दूर करने वाले) और सिद्धिदाता (सफलता प्रदान करने वाले) के रूप में पूजा जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन से ही होती है। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी का पर्व लोगों के जीवन में खुशहाली, सौभाग्य और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
ऐतिहासिक महत्व
इतिहासकारों के अनुसार, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेज़ों के समय में गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक उत्सव के रूप में लोकप्रिय बनाया। उनका उद्देश्य था कि लोग एक साथ इकट्ठे हों, राष्ट्रभक्ति की भावना मजबूत हो और समाज में एकता का संदेश फैले। तभी से यह पर्व सार्वजनिक रूप से बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा।
श्री गणेश जी आरती
(१) जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
अर्थ – गणेश जी की जय हो, गणेश जी की जय हो। जिनकी माता माँ भवानी पार्वती हैं और पिता स्वयं महादेव शिव शंकर हैं। हे देवता! गणेश आपकी जय हो।
(२) एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी।
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी।
अर्थ – भगवान गणेश एक दाँत वाले सभी पर दया करने वाले, चार भुजाओं को धारण करते हैं। जिनके माथे पर सिंदूर का तिलक शोभित होता है और वे मूषकराज की सवारी करते हैं।….आगे पढ़े
गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है?
गणेश चतुर्थी का उत्सव 10 दिनों तक चलता है, जिसे ‘गणेश महोत्सव’ कहा जाता है। इसकी शुरुआत चतुर्थी से होती है और समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है। आइए जानते हैं इसे किस प्रकार से मनाया जाता है –
1. गणेश प्रतिमा की स्थापना
- भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन घरों और पंडालों में श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
- प्रतिमा को सजाकर आसन पर रखा जाता है। आसन पर लाल या पीले कपड़े बिछाए जाते हैं।
- पंडालों में प्रतिमाएँ बड़े-बड़े आकर्षक रूपों में बनाई जाती हैं, जिनकी भव्य सजावट होती है।
2. गणपति की पूजा
- प्रतिदिन सुबह-शाम गणेश जी की आरती और पूजा की जाती है।
- मंत्रोच्चार, शंख-घंटे की ध्वनि और भजन-कीर्तन से वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
- पूजा में दुर्वा (हरी घास), मोदक, नारियल, फूल, लाल चंदन और धूप-दीप का विशेष महत्व होता है।
3. व्रत का महत्व
कई भक्त इस दिन गणेश चतुर्थी का व्रत रखते हैं। यह व्रत सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और विघ्न बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
- व्रती प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनते हैं।
- दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को गणपति की आरती करने के बाद फलाहार करते हैं।
4. भोग और प्रसाद
गणेश जी को मोदक सबसे प्रिय हैं। इसीलिए हर दिन उन्हें मोदक, लड्डू, नारियल और गुड़ का भोग लगाया जाता है।
- महाराष्ट्र में ‘उकडीचे मोदक’ (चावल के आटे से बने) विशेष रूप से बनाए जाते हैं।
- साथ ही घरों में तरह-तरह के पकवान बनाकर प्रसाद वितरित किया जाता है।
5. सांस्कृतिक कार्यक्रम
सार्वजनिक पंडालों में गणेश उत्सव के दौरान –
- भक्ति गीत, नाटक, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, लोकनृत्य और जागरण आयोजित किए जाते हैं।
- समाज में एकता, सद्भाव और सहयोग का संदेश दिया जाता है।
6. विसर्जन (अनंत चतुर्दशी)
गणेश उत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है। इस दिन गणेश प्रतिमा का जल में विसर्जन किया जाता है।
- भक्तजन नाचते-गाते, ढोल-ताशों की धुन पर ‘गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ’ कहते हुए शोभायात्रा निकालते हैं।
- प्रतिमा को नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित किया जाता है।
- यह विदाई दुख और उमंग दोनों का संगम होती है, क्योंकि भक्त अगले वर्ष फिर से गणेश जी के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।
आधुनिक समय में गणेश चतुर्थी
आजकल गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक पर्व है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी बन चुकी है।
- इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का प्रचलन बढ़ रहा है ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे।
- विदेशों में बसे भारतीय भी अपने-अपने शहरों में गणेश पंडाल बनाकर इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं।
- सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के जरिए गणेश उत्सव का संदेश पूरे विश्व में फैलता है।
गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व
- यह पर्व हमें भक्ति, अनुशासन और समर्पण का संदेश देता है।
- गणेश जी का बड़ा मस्तक हमें सिखाता है कि ज्ञान अर्जन करें और बड़े विचार रखें।
- उनकी छोटी आँखें एकाग्रता का प्रतीक हैं और बड़े कान सुनने की क्षमता का।
- हाथी जैसा विशाल रूप हमें धैर्य और शक्ति का पाठ पढ़ाता है।
- इस पर्व के माध्यम से लोग अपने जीवन से नकारात्मकता हटाकर सकारात्मकता को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। यह पर्व हमें आस्था, एकता और उत्साह का अनुभव कराता है। भगवान गणेश विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता हैं, इसलिए उनके आगमन से हर घर और समाज में नई ऊर्जा और खुशियाँ आती हैं। प्रतिमा विसर्जन के समय भले ही थोड़ी उदासी होती है, परंतु साथ ही यह विश्वास भी रहता है कि गणपति बाप्पा अगले वर्ष फिर से आएँगे और अपने भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देंगे।