
Mahamrityunjaya Mantra
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली मंत्र है, जो स्वास्थ्य, सुरक्षा और लंबी आयु के लिए जपा जाता है। इसे त्रयंबक मंत्र भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें भगवान शिव को तीन नेत्रों वाला कहा गया है। मंत्र की उच्चारण विधि और इसके गूढ़ अर्थ इसे विशेष बनाते हैं।
मंत्र का एक अंश इस प्रकार है:
“ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥”
इस मंत्र का हिंदी अर्थ:
“हम उस त्रिनेत्रधारी (भगवान शिव) की आराधना करते हैं, जो हमें खुशबू और पुष्टिकरता (स्वास्थ्य और समृद्धि) प्रदान करने वाले हैं। जैसे एक पका हुआ फल अपने वृक्ष से बिना किसी बाधा के अलग हो जाता है, वैसे ही हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त करें और अमरत्व प्रदान करें।”
अर्थ की व्याख्या:
- त्र्यम्बकम्: यह भगवान शिव का एक नाम है, जिसका अर्थ है “तीन नेत्रों वाले।”
- सुगन्धिम्: जो सुखद सुगंध और सकारात्मकता फैलाने वाले हैं।
- पुष्टिवर्धनम्: जो हमारे जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और उन्नति को बढ़ाने वाले हैं।
- उर्वारुकम्: ककड़ी या किसी फल की तरह, जो पक जाने पर बेल से स्वतः अलग हो जाता है।
- बन्धनान्: बंधनों या किसी प्रकार की कठिनाई का प्रतीक।
- मृत्योर्मुक्षीय: हमें मृत्यु के बंधन से मुक्ति दिलाएं।
- मा अमृतात्: और अमरता, शांति, और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करें।
इस मंत्र के नियमित जप से मानसिक शांति, स्वास्थ्य में सुधार, और समस्त प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप 21 बार
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥1॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥2॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥3॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥4॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥5॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥6॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥7॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥8॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥9॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥10॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥11॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥12॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥13॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥14॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥15॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥16॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥17॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥18॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥19॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥20॥
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्॥21॥