
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हर माह दो बार आने वाली एकादशी तिथि न केवल धार्मिक रूप से पवित्र मानी जाती है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, संयम और ईश्वर भक्ति का प्रतीक भी होती है। इन्हीं एकादशियों में से एक है अचला एकादशी, जिसे वैष्णव एकादशी या ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है और मोक्ष प्राप्ति, पाप नाश तथा पुण्य लाभ के लिए इसका पालन किया जाता है।
अचला एकादशी क्या होती है?
अचला एकादशी, हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। ‘अचला' शब्द का अर्थ होता है ‘अचल', यानी स्थिर या अडिग। इसका तात्पर्य यह है कि इस व्रत का पुण्य फल अचल (स्थायी) होता है — एक बार व्रत कर लेने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह जीवनभर साथ रहता है और मृत्यु के बाद भी आत्मा को ऊँचे लोकों की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत सभी आयु वर्ग के लोगों, विशेषकर ग्रहस्थों और भक्तों के लिए अत्यंत शुभ एवं लाभकारी माना गया है।
अचला एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व
अचला एकादशी का उल्लेख अनेक पुराणों, विशेषतः ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। इन ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सूर्य, चंद्र और अग्नि की पूजा जितना पुण्य प्राप्त होता है।
भगवान विष्णु इस दिन स्वयं व्रतधारियों के घर पधारते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह व्रत आत्म-संयम, भक्ति और तप का प्रतीक है। इसे रखने से व्यक्ति की चित्तवृत्ति शुद्ध होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
क्यों रखा जाता है अचला एकादशी का व्रत?
- पापों के नाश हेतु – यह व्रत प्राचीन काल से ही पापों के प्रायश्चित का माध्यम रहा है। जो लोग अनजाने में या जानबूझकर पाप कर चुके हैं, उनके लिए यह व्रत मुक्ति का द्वार खोलता है।
- मोक्ष की प्राप्ति के लिए – मान्यता है कि अचला एकादशी का व्रत करने से आत्मा को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।
- ईश्वर भक्ति हेतु – यह दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना के लिए सर्वोत्तम होता है। व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने मन, वचन और कर्म से ईश्वर के निकट जाता है।
- सौभाग्य व समृद्धि प्राप्ति के लिए – इस व्रत को रखने से घर में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
अचला एकादशी का व्रत कैसे करें?
1. व्रत की तैयारी (दशमी तिथि पर):
- व्रत से एक दिन पहले (दशमी को) सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- मन को संयमित करें और ईश्वर का ध्यान करते हुए नींद लें।
2. एकादशी तिथि पर:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
- तुलसी पत्र, पीले पुष्प, चंदन, धूप आदि से भगवान की पूजा करें।
- विष्णु सहस्रनाम, भगवद्गीता पाठ या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- दिनभर उपवास रखें। यदि स्वास्थ्य अनुमति न दे तो फलाहार करें।
- रात्रि जागरण करें और भजन-कीर्तन करते रहें।
3. द्वादशी तिथि पर:
- अगले दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या दक्षिणा दान करें।
- इसके बाद स्वयं व्रत खोलें।
क्या करें इस दिन:
- भगवान विष्णु की पूजा करें: इस दिन विशेष रूप से श्रीहरि विष्णु की पूजा करें।
- तुलसी का पूजन करें: तुलसी माता भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। तुलसी पत्र अर्पण करें।
- जप और ध्यान करें: “ॐ विष्णवे नमः” या “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें।
- पवित्र व्रत कथा का श्रवण करें: अचला एकादशी की व्रत कथा सुनना या पढ़ना अत्यंत पुण्यदायक होता है।
- भजन-कीर्तन करें: रात्रि जागरण के दौरान भगवान के भजन गाएं।
- दान करें: अन्न, वस्त्र, धन या जरूरतमंदों की सेवा अवश्य करें।
क्या न करें इस दिन:
- अन्न ग्रहण न करें – इस दिन अनाज, चावल, दाल आदि वर्जित माने गए हैं। केवल फलाहार या जल ही ग्रहण करें।
- क्रोध, निंदा, झूठ व वाणी पर संयम रखें – इस दिन मन, वाणी और कर्म को शुद्ध रखना अनिवार्य है।
- विवाह, भोजन-पार्टी या उत्सव आदि न करें – यह दिन साधना और संयम का है, उत्सव का नहीं।
- बाल, नाखून आदि न काटें – धार्मिक दृष्टि से यह अनुचित माना गया है।
- तामसिक भोजन व मांस-मदिरा का सेवन पूर्णत: वर्जित है।
अचला एकादशी व्रत की कथा (संक्षेप में)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा मंधाता ने महर्षि वसिष्ठ से पूछा कि कौन-सा व्रत सबसे श्रेष्ठ है जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो सके। तब वसिष्ठ ऋषि ने उन्हें अचला एकादशी व्रत का उपदेश दिया और बताया कि इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र जैसे धर्मनिष्ठ राजा भी स्वर्ग के अधिकारी बने।
कहानी में यह भी आता है कि एक वेश्यागामी राजा, जिसने अपना सारा समय भोग-विलास में गँवा दिया था, केवल एक बार संयोगवश अचला एकादशी का व्रत कर बैठा। उसके इस पुण्य से वह मृत्यु के बाद विष्णुलोक गया। यह कथा हमें यह सिखाती है कि एकादशी व्रत का प्रभाव कितना गहन और फलदायी होता है।
अचला एकादशी के लाभ
- पापों का नाश – जो भी व्यक्ति इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
- धार्मिक पुण्य की प्राप्ति – यह व्रत हजारों गायों के दान, यज्ञ एवं तीर्थ यात्रा के बराबर फल देता है।
- मोक्ष की प्राप्ति – यह व्रत मृत्यु के उपरांत आत्मा को मोक्ष प्रदान करता है।
- सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि – घर में सुख-शांति आती है और दरिद्रता दूर होती है।
- मन की शुद्धि और आत्मबल में वृद्धि – संयम से मन निर्मल होता है और ईश्वर भक्ति की भावना दृढ़ होती है।
- स्वास्थ्य में लाभ – उपवास और सात्विक जीवनशैली से शरीर भी स्वस्थ रहता है।
अचला एकादशी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्म-उद्धार का साधन है। यह व्रत जीवन में संयम, श्रद्धा और भक्ति को स्थान देने की प्रेरणा देता है। यह मनुष्य को उसकी मूल आत्मा की ओर ले जाता है और उसे सत्य, धर्म और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करता है।
जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक और नियमों के अनुसार इस व्रत को करता है, उसे सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को, विशेषतः वैष्णव भक्तों को अचला एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए और इसका लाभ लेना चाहिए।