
दिवाली का पर्व कई ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में यह सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है और इसके साथ अनेक मान्यताएँ और पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं कि दिवाली क्यों मनाई जाती है:
दीवाली 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
दीवाली (लक्ष्मी पूजा) — 20 अक्टूबर 2025, सोमवार
- लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: 7:08 PM से 8:18 PM
- प्रदोष काल: लगभग 5:58 PM से 8:25 PM
- वृषभ काल: 7:08 PM से 9:03 PM
1. भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी
- सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, दिवाली उस दिन की याद में मनाई जाती है जब भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे।
- उनकी वापसी पर अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीपों से सजाया और खुशियाँ मनाई। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि दिवाली पर दीप जलाकर खुशियाँ मनाई जाती हैं।
2. माता लक्ष्मी का जन्म और विवाह
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए, दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है।
- एक अन्य मान्यता के अनुसार, दिवाली के दिन माता लक्ष्मी का भगवान विष्णु के साथ विवाह हुआ था। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा करके समृद्धि की कामना की जाती है।
3. नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय
- एक और कथा के अनुसार, दिवाली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) पर भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था और उसके आतंक से लोगों को मुक्त कराया था।
- इस विजय के उपलक्ष्य में दिवाली का पर्व मनाया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
4. समृद्धि और नए आरंभ का पर्व
- दिवाली का समय फसल कटाई के मौसम का अंत होता है, और यह नया व्यापारिक वर्ष शुरू करने का भी संकेत है।
- व्यापारी अपने पुराने बही-खाते बंद करते हैं और नई शुरुआत के लिए लक्ष्मी पूजन करते हैं। इस दिन को सुख-समृद्धि और अच्छे भाग्य का प्रतीक माना जाता है।
5. जैन धर्म में दिवाली
- जैन धर्म में दिवाली का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर ने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था।
- जैन अनुयायी दिवाली को मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं और भगवान महावीर की पूजा करते हैं।
6. सिख धर्म में दिवाली
- सिख धर्म में दिवाली का महत्व है क्योंकि इसी दिन गुरु हरगोबिंद सिंह जी को मुग़ल बादशाह जहांगीर ने ग्वालियर के किले से रिहा किया था।
- सिख समुदाय इस दिन को ‘बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाता है और इसे स्वतंत्रता का प्रतीक मानता है।
7. सकारात्मकता और खुशियों का पर्व
- दिवाली का पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। यह दिन सभी के जीवन में खुशियाँ, प्रेम और सकारात्मकता लाने का संदेश देता है।
- लोग इस दिन अपने घरों को सजाते हैं, दीप जलाते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और पुराने गिले-शिकवे मिटाकर एक नए आरंभ की ओर बढ़ते हैं।
दिवाली पूजन विधि
- स्थान की तैयारी: दिवाली पूजा के लिए सबसे पहले ईशान कोण या उत्तर दिशा में सफाई करें। वहाँ स्वास्तिक बनाकर उसके बीच में चावल की ढेरी रखें। उस पर लकड़ी का पाट रखें, पाट पर लाल कपड़ा बिछाएं और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। साथ ही, गणेश और कुबेर की तस्वीरें भी रखें, और माता के दाएं-बाएं सफेद हाथियों के चित्र भी होने चाहिए।
- पंचदेव स्थापना: पूजन में सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु की स्थापना करें। इसके बाद धूप, दीप, अगरबत्ती जलाकर सभी देवी-देवताओं की तस्वीरों पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र करें।
- पूजन आरंभ: कुश के आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजा करें, जिसमें पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार शामिल हों। पूजन के अंत में सिद्धि के लिए दक्षिणा चढ़ाएं और आह्वान के समय पुलहरा अर्पित करें।
- हल्दी-कुमकुम का तिलक: माता लक्ष्मी और सभी देवी-देवताओं के मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, चंदन और चावल लगाएं। फिर फूल-माला अर्पित करें। अनामिका अंगुली से चंदन, कुमकुम, गुलाल और हल्दी अर्पित करें। मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
ॐ, श्रीं, ह्रीं, श्रीं, हे कमल पर विराजित माँ लक्ष्मी, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए। आपको बार-बार प्रणाम। श्रीं, ह्रीं, श्रीं माँ महालक्ष्मी को नमस्कार।
ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम: धनप्रदायै नमो नम: विश्वजनन्यै नमो नमः।
ॐ, महालक्ष्मी को बार-बार प्रणाम, धन देने वाली को प्रणाम, संपूर्ण सृष्टि की जननी को प्रणाम।
- प्रसाद या नैवेद्य अर्पण: माता लक्ष्मी के लिए मखाना, सिंघाड़ा, बताशा, ईख, हलुआ, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग की मिठाई, केसर-भात आदि अर्पित करें। 16 प्रकार की गुजिया, पपड़ियां, अनर्सा, लड्डू, चावल, बादाम, पिस्ता, छुआरा, हल्दी, सुपारी, गेहूं, नारियल, केवड़े के फूल और आम्रबेल का भोग भी चढ़ाएं। ध्यान दें कि नैवेद्य में नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग न हो, और पकवान पर तुलसी का पत्ता रखा हो।
- आरती: पूजा के बाद खड़े होकर माता लक्ष्मी की आरती गाएं। कपूर जलाकर आरती करें। आरती को चार बार चरणों, दो बार नाभि और एक बार मुख के सामने घुमाएं, कुल सात बार घुमा कर आरती पूरी करें। अंत में, जल का छिड़काव करें और प्रसाद सब पर बांटें।
- दीप प्रज्वलन: मुख्य द्वार और आंगन में दीये जलाएं, एक दीया यम के नाम का भी जलाएं। रात में घर के हर कोने में दीये जलाएं।