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Maa Brahmacharini 2025 | नवरात्रि का दूसरा दिन – माँ ब्रह्मचारिणी | PDF

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नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी का नाम उनके तपस्विनी रूप से लिया गया है। “ब्रह्म” का अर्थ होता है तपस्या, और “चारिणी” का अर्थ होता है आचरण करने वाली। माँ ब्रह्मचारिणी ने कठिन तपस्या की थी ताकि वे भगवान शिव को प्राप्त कर सकें। इस रूप में माँ श्वेत वस्त्र धारण किए हुए होती हैं और उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है।

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

  • वस्त्र: माँ ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण किए हुए होती हैं, जो शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
  • हाथ में माला: यह माला भक्ति और साधना का प्रतीक है।
  • हाथ में कमंडल: कमंडल वैराग्य और साधना का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि माँ ने सांसारिक मोह को त्याग दिया था।

माँ ब्रह्मचारिणी का महत्व

  • तपस्या और साधना का प्रतीक – माँ ब्रह्मचारिणी कठोर तपस्या का प्रतीक हैं। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप किया था।
  • धैर्य और संयम की प्रेरणा – उनकी पूजा करने से भक्तों में धैर्य, संयम और आत्मसंयम की भावना विकसित होती है।
  • ज्ञान और विद्या का आशीर्वाद – माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से व्यक्ति को विद्या, ज्ञान और आत्मबोध की प्राप्ति होती है।
  • संकटों से रक्षा – जो भी भक्त कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं, उनके लिए माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना सहायक होती है।
  • आध्यात्मिक उन्नति – उनकी उपासना से साधक को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है और वह सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ता है।

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

  • स्नान और शुद्ध वस्त्र: सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को साफ करें।
  • कलश स्थापना: माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र के सामने एक घी का दीपक जलाएं।
  • सफेद फूलों और अक्षत (चावल): पूजा में सफेद फूलों, अक्षत, और गंगाजल का उपयोग करें।
  • ध्यान मंत्र: माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए उनका आवाहन करें।
  • मंत्र जप: माँ ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जप करें।
  • पुष्प और भोग अर्पण: माँ को सफेद फूल अर्पित करें और उन्हें प्रसाद के रूप में चीनी या मिश्री का भोग लगाएं।
  • आरती: पूजा के अंत में माँ ब्रह्मचारिणी की आरती गाएं।

माँ ब्रह्मचारिणी की कथा

माँ ब्रह्मचारिणी के इस स्वरूप से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने अपने अगले जन्म में हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या के कारण ही उन्हें “ब्रह्मचारिणी” कहा गया। उन्होंने हज़ारों वर्षों तक कठिन तप किया और सिर्फ फल-फूलों का सेवन किया। इस तपस्या की वजह से माँ ने ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया और अंततः भगवान शिव से उनका विवाह हुआ।

माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान मंत्र

दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

माँ ब्रह्मचारिणी का स्तोत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

माँ ब्रह्मचारिणी का मूल मंत्र

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

माँ ब्रह्मचारिणी की आरती

पूजा का उद्देश्य और लाभ

  • माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को संयम, तपस्या, और त्याग की प्रेरणा मिलती है।
  • उनकी कृपा से जीवन में सहनशीलता, संयम और दृढ़ संकल्प की वृद्धि होती है।
  • भक्तों को अध्यात्मिक शक्ति, आत्मविश्वास, और भक्ति मार्ग पर सफलता प्राप्त होती है।
  • माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक के जीवन में सभी कठिनाइयाँ और कष्ट दूर होते हैं।

माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना का फल

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से व्यक्ति में सहनशीलता, धैर्य, और मानसिक शक्ति का विकास होता है। उनकी उपासना से भक्तों के जीवन में आत्म-संयम, आत्मविश्वास, और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। कठिन परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखने की शक्ति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक का स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होता है, जो जीवन में सृजनात्मकता और आत्मिक शक्ति प्रदान करता है।

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