
॥ दोहा ॥
जय गिरी तनये दक्षजे, शम्भु प्रिये गुणखानि।
गणपति जननी पार्वती, अम्बे! शक्ति! भवानि॥
अर्थ: हे पर्वतराज हिमालय की पुत्री, दक्ष प्रजापति की कन्या, शिवजी की प्रिय और गुणों की खान! हे गणपति की माता पार्वती, शक्ति और भवानि स्वरूपिणी अम्बे! आपकी जय हो।
॥ चौपाई ॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे। पंच बदन नित तुमको ध्यावे॥
अर्थ: ब्रह्मा जी भी आपके स्वरूप का रहस्य नहीं जान पाते। शिवजी (पाँच मुख वाले) प्रतिदिन आपका ध्यान करते हैं।
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो। सहसबदन श्रम करत घनेरो॥
अर्थ: षडानन (कार्तिकेय) और सहस्रमुख वाले नारायण भी आपके यश का पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते, भले ही कितना भी प्रयास करें।
तेऊ पार न पावत माता। स्थित रक्षा लय हित सजाता॥
अर्थ: वे भी आपके गुणों की सीमा नहीं जान पाते। आप सृष्टि की रचना, पालन और संहार में सहायक हैं।
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे। अति कमनीय नयन कजरारे॥
अर्थ: आपके होंठ प्रवाल (मूंगा) के समान लाल हैं, और आपकी आँखें काजल से सुशोभित हैं।
ललित ललाट विलेपित केशर। कुंकुम अक्षत शोभा मनहर॥
अर्थ: आपके सुंदर ललाट पर केसर का तिलक है, और कुंकुम-अक्षत से शोभायमान हैं।
कनक बसन कंचुकी सजाए। कटी मेखला दिव्य लहराए॥
अर्थ: आप सोने जैसे चमकते वस्त्र और कंचुकी पहनती हैं, और आपकी कमर पर दिव्य मेखला शोभायमान है।
कण्ठ मदार हार की शोभा। जाहि देखि सहजहि मन लोभा॥
अर्थ: आपके गले में मदार के फूलों का हार है, जिसे देखकर मन स्वतः ही मोहित हो जाता है।
बालारुण अनन्त छबि धारी। आभूषण की शोभा प्यारी॥
अर्थ: आपका स्वरूप बालारुण (सूर्योदय) के समान है, और आपके आभूषणों की शोभा अद्वितीय है।
महिमा और स्वरूप का वर्णन
नाना रत्न जटित सिंहासन। तापर राजति हरि चतुरानन॥
अर्थ: रत्नों से जड़े सिंहासन पर ब्रह्मा और विष्णु विराजमान होकर आपकी पूजा करते हैं।
इन्द्रादिक परिवार पूजित। जग मृग नाग यक्ष रव कूजित॥
अर्थ: इंद्र और अन्य देवता आपकी आराधना करते हैं। सभी जीव-जंतु, नाग और यक्ष आपकी महिमा गाते हैं।
गिर कैलास निवासिनी जय जय। कोटिक प्रभा विकासिन जय जय॥
अर्थ: कैलाश पर्वत पर निवास करने वाली, करोड़ों सूर्यों के समान चमकने वाली माँ पार्वती की जय हो।
त्रिभुवन सकल कुटुम्ब तिहारी। अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी॥
अर्थ: तीनों लोक तुम्हारे परिवार हैं, और सृष्टि के हर कण में तुम्हारी ज्योति विद्यमान है।
शिव-पार्वती विवाह का वर्णन
हैं महेश प्राणेश! तुम्हारे। त्रिभुवन के जो नित रखवारे॥
अर्थ: महेश (शिवजी) तुम्हारे प्राणप्रिय हैं, जो तीनों लोकों की रक्षा करते हैं।
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब। सुकृत पुरातन उदित भए तब॥
अर्थ: शिव जैसे अद्वितीय पति को प्राप्त करने के लिए तुम्हारे पुराने पुण्य कर्म फलीभूत हुए।
सदा श्मशान बिहारी शंकर। आभूषण हैं भुजंग भयंकर॥
अर्थ: जो शिव श्मशान में निवास करते हैं और भुजंग (साँप) को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, वे तुम्हारे पति बने।
कण्ठ हलाहल को छबि छायी। नीलकण्ठ की पदवी पायी॥
अर्थ: शिव ने हलाहल विष पीकर नीलकंठ की उपाधि प्राप्त की।
देव मगन के हित अस कीन्हों। विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हों॥
अर्थ: शिव ने देवताओं की भलाई के लिए विष स्वयं ग्रहण किया और उन्हें अमृत दिया।
ताकी तुम पत्नी छवि धारिणि। दूरित विदारिणी मंगल कारिणि॥
अर्थ: उन शिव की तुम पत्नी बनकर संसार के संकटों को हरने वाली और मंगल लाने वाली हो।
माँ पार्वती की तपस्या का वर्णन
तुमने कठिन तपस्या कीनी। नारद सों जब शिक्षा लीनी॥
अर्थ: तुमने कठोर तपस्या की और नारद जी से तप का उपदेश प्राप्त किया।
अन्न न नीर न वायु अहारा। अस्थि मात्र तन भयउ तुम्हारा॥
अर्थ: तुमने बिना अन्न, जल और वायु के तपस्या की, और तुम्हारा शरीर मात्र हड्डियों का ढाँचा रह गया।
पत्र घास को खाद्य न भायउ। उमा नाम तब तुमने पायउ॥
अर्थ: पत्ते और घास भी तुम्हें भोजन के रूप में स्वीकार नहीं थे। तब तुम्हारा नाम ‘उमा' पड़ा।
सप्तर्षियों और वरदान की कथा
तप बिलोकि रिषि सात पधारे। लगे डिगावन डिगी न हारे॥
अर्थ: तुम्हारी तपस्या देखकर सप्तर्षि आए और तुम्हें विचलित करने का प्रयास किया, लेकिन तुम अडिग रहीं।
तब तव जय जय जय उच्चारेउ। सप्तरिषि निज गेह सिधारेउ॥
अर्थ: अंत में उन्होंने तुम्हारी जय-जयकार की और अपने स्थान को लौट गए।
सुर विधि विष्णु पास तब आए। वर देने के वचन सुनाए॥
अर्थ: फिर ब्रह्मा और विष्णु ने आकर तुम्हें वरदान देने का प्रस्ताव रखा।
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों। चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों॥
अर्थ: तुमने उनसे शिव को पति रूप में माँगा, जो तीनों लोकों के रक्षक और धन के अधिपति हैं।
चालीसा का फल
जो पढ़िहै जन यह चालीसा। धन जन सुख देइहै तेहि ईसा॥
अर्थ: जो व्यक्ति इस चालीसा का पाठ करेगा, उसे धन, संतान और सुख प्राप्त होंगे।
॥ दोहा ॥
कूट चन्द्रिका सुभग शिर, जयति जयति सुख खानि।
पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि॥
अर्थ: माँ पार्वती, जिनके सिर पर चंद्रमा का मुकुट है और जो सुख की खान हैं, अपने भक्तों का सदैव कल्याण करें।