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Sarva Pitru Amavasya 2025 | सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध महत्व, तिथि, विधि और लाभ | PDF

सनातन धर्म में पितरों का सम्मान और स्मरण करना उतना ही महत्वपूर्ण माना गया है जितना देवताओं की उपासना करना। शास्त्रों में कहा गया है कि –
“पितृदेवो भव” अर्थात् जैसे माता-पिता देवता के समान होते हैं, वैसे ही उनके निधन के बाद उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना हमारा कर्तव्य है।
हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इन सोलह दिनों में अपने दिवंगत पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है।

पितृपक्ष का अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या कहलाता है। इसे महालय अमावस्या और पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है। यह दिन उन सभी पितरों को समर्पित है जिनका श्राद्ध विशेष तिथियों पर नहीं हो पाया या जिनकी पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है।

सर्वपितृ अमावस्या क्या है?

  • यह अमावस्या पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है।
  • इस दिन सभी पितरों के लिए सामूहिक श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
  • इसे “सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या” भी कहते हैं क्योंकि इस दिन किए गए श्राद्ध कर्म से सभी पितरों को तृप्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • यदि किसी कारणवश पितृपक्ष में पूर्वजों की तिथि पर श्राद्ध नहीं हो पाया, तो सर्वपितृ अमावस्या पर अवश्य करना चाहिए।

शास्त्रीय और पौराणिक महत्व

  1. गरुड़ पुराण के अनुसार – पितरों की तृप्ति के बिना देवता भी प्रसन्न नहीं होते।
  2. महाभारत में भी वर्णन मिलता है कि पितरों के श्राद्ध से वंशजों के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  3. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों की आत्माएँ पृथ्वी पर आती हैं। वे अपने वंशजों से आशा करती हैं कि उन्हें जल, अन्न और तर्पण अर्पित किया जाए।
  4. अमावस्या के दिन पितरों का पृथ्वी से लौटना होता है। अतः अंतिम दिन श्राद्ध और तर्पण करने से वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

2025 में सर्वपितृ अमावस्या कब है?

  • पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में सर्वपितृ अमावस्या (महालय अमावस्या)
    21 सितंबर 2025 को मनाई जाएगी।
  • यह दिन पूरे भारत में पितृ तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम माना जाएगा।

सर्वपितृ अमावस्या क्यों मनाई जाती है?

  • यह दिन उन पितरों के लिए है जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं होती।
  • जिनका श्राद्ध किसी कारण से पितृपक्ष में नहीं हो पाया हो, उनका भी श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • पितृ अमावस्या करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है।
  • पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को आयु, आरोग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन क्या किया जाता है?

1. प्रातःकालीन स्नान और संकल्प
  • प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करें।
  • तिल, कुश और जल से आचमन करें।
  • संकल्प लें कि आज अपने पितरों को श्राद्ध और तर्पण अर्पित करेंगे।
2. तर्पण विधि
  • कुशा से बने आसन पर बैठकर तर्पण किया जाता है।
  • तर्पण के लिए जल, तिल और कुश का प्रयोग किया जाता है।
  • “ॐ पितृभ्यः स्वधा” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल अर्पित किया जाता है।
3. पिंडदान
  • उबले चावल, तिल, घी, शहद और दही से पिंड बनाए जाते हैं।
  • इन्हें कुशा पर रखकर पितरों को अर्पित किया जाता है।
  • फिर इसे ब्राह्मण, गौ या किसी पवित्र स्थल पर विसर्जित किया जाता है।
4. ब्राह्मण और गरीबों को भोजन
  • पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना अनिवार्य है।
  • कौवे, कुत्ते, चींटी, गाय और गाय-बछड़े को भोजन देने की भी परंपरा है।
5. दान-पुण्य
  • अन्न, वस्त्र, तिल, सोना, गौ और भूमि का दान पितृ अमावस्या पर श्रेष्ठ माना जाता है।

सर्वपितृ अमावस्या के लाभ

  1. पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
  2. पितृदोष का निवारण होता है।
  3. परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  4. संतान, धन और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
  5. वंशजों की आयु और सौभाग्य बढ़ता है।

क्या करें और क्या न करें

करें
  • श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करें।
  • ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराएँ।
  • पितरों को याद कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
न करें
  • मांस, मदिरा या तामसिक भोजन का सेवन न करें।
  • घर में शोर-शराबा, झगड़ा या अपवित्र कार्य न करें।
  • पितृ अमावस्या पर शुभ कार्य (जैसे विवाह, गृह प्रवेश) वर्जित हैं।

क्षेत्रीय मान्यताएँ

  • उत्तर भारत में इस दिन गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान व तर्पण का विशेष महत्व है।
  • दक्षिण भारत में इसे महालय अमावस्या कहा जाता है और देवी दुर्गा की आराधना का प्रारंभ इसी दिन से होता है।
  • महाराष्ट्र और गुजरात में भी लोग नदी तट पर जाकर पिंडदान करते हैं।

पितृ दोष निवारण

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है, उन्हें सर्वपितृ अमावस्या पर विशेष पूजा, दान और तर्पण करना चाहिए। इससे पितृ दोष के प्रभाव कम होते हैं और जीवन में बाधाएँ दूर होती हैं।

सर्वपितृ अमावस्या न केवल पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे जीवन में आध्यात्मिक संतुलन और पारिवारिक समृद्धि लाने का भी साधन है।
वर्ष 2025 में यह पावन तिथि 21 सितंबर को आ रही है। इस दिन अपने पितरों का स्मरण कर तर्पण, पिंडदान और दान अवश्य करना चाहिए।

श्राद्ध कर्म के माध्यम से हम यह स्वीकार करते हैं कि हमारा अस्तित्व हमारे पूर्वजों के कारण ही है और उनका आशीर्वाद हमारे जीवन को सफल और मंगलमय बनाता है।

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