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Shri Giriraj Aarti

ॐ जय जय जय गिरिराज, स्वामी जय जय जय गिरिराज
संकट में तुम राखौ, निज भक्तन की लाज।। ॐ जय।।

अर्थ – हे गिरिराज देवता! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। हे हम सभी के स्वामी गिरिराज! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। जब आपके भक्तों पर संकट आये तब आप उसे दूर कर उनके मान-सम्मान की रक्षा कीजिये।

इन्द्रादिक सब सुर मिल, तुम्हरौं ध्यान धरैं।
रिषि मुनिजन यश गावें, ते भवसिन्धु तरैं।। ॐ जय।।

अर्थ – इंद्र देवता सहित सभी देवता मिल कर आपका ही ध्यान करते हैं। जो भी ऋषि-मुनि आपका ध्यान करता है, वह भव सिन्धु पार निकल जाता है।

सुन्दर रूप तुम्हारौ श्याम सिला सोहें।
वन उपवन लखि-लखि के भक्तन मन मोहें।। ॐ जय।।

अर्थ – आपका रूप बहुत ही ज्यादा सुन्दर है जिस पर वन, पेड़-पौधे इत्यादि लगे हुए हैं। इसे देख कर सभी भक्तों का मन मोहित हो जाता है।

मध्य मानसी, गङ्गा कलि के मल हरनी।
तापै दीप जलावें, उतरें वैतरनी।। ॐ जय।।

अर्थ – आपके मध्य में मानसी व गंगा नदी बहती है। जो भी आपके सम्मुख दीप जलाता है, वह वैतरणी नदी में उतर जाता है।

नवल अप्सरा कुण्ड सुहावन-पावन सुखकारी।
बायें राधा-कुण्ड नहावें महा पापहारी।। ॐ जय।।

अर्थ – आपके कुंड में तो स्वर्ग से आकर अप्सराएँ भी नहाती है और परम सुख की अनुभूति करती है। बायीं ओर जो राधा कुंड है, उसमे नहाने पर तो हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

तुम्ही मुक्ति के दाता कलियुग के स्वामी।
दीनन के हो रक्षक प्रभु अन्तरयामी।। ॐ जय।।

अर्थ – आप ही हम सभी को मुक्ति प्रदान करने वाले हैं और आप कलयुग के स्वामी भी हैं। आप दीन लोगों की रक्षा करने वाले हैं और अंतर्यामी भी हैं।

हम हैं शरण तुम्हारी, गिरिवर गिरधारी।
देवकीनंदन कृपा करो, हे भक्तन हितकारी।। ॐ जय।।

अर्थ – हे गिरिराज पर्वत! हम सभी आपकी शरण में आये हैं। हे देवकी माता के पुत्र! अपने भक्तों के हितों की रक्षा कीजिये।

जो नर दे परिकम्मा पूजन पाठ करें।
गावें नित्य आरती पुनि नहिं जनम धरें।। ॐ जय।।

अर्थ – जो मनुष्य आपकी परिक्रमा करके आपकी पूजा करता है और गोवर्धन आरती का पाठ करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।