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Shri Hanuman Ashtak | श्री हनुमान अष्टक | PDF

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Shri Hanuman Ashtak

बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

अर्थ- हे हनुमान जी (Ashtak) जब आप बालक थे तब आपने सूर्य को अपने मुख में रख लिया था जिससे तीनों लोकों में अंधेरा हो गया था इससे संसार भर में विपत्ति छा गयी और उस संकट को कोई भी दूर न कर सका। देवताओं ने आकर आपकी विनती की और आपने सूर्य को मुक्त कर दिया। इस प्रकार संकट दूर हुआ।

हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है।  

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अर्थ- बालि के दर से सुग्रीव पर्वत पर रहते थे। उन्होंने श्री रामचंद्र जी को आते देखा उन्होंने आपको पता लगाने के लिए भेजा।

आपने अपना ब्राह्मण का रूप करके श्री रामचंद्र जी से भेंट की और उनको अपने साथ लिवा लाये जिससे आपने सुग्रीव के शोक का निवारण किया। हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है। 

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

अर्थ- सुग्रीव ने अंगद के साथ सीताजी की खोज के लिए अपनी सेना को भेजते समय कह दिया था यदि सीताजी का पता लगाकर नहीं आए तो हम तुम सबको मार डालेंगे। सब ढूंढ-ढूंढ कर हार गए तब आप समुद्र तट से कूद कर सीताजी का पता लगा कर लाये जिससे सबके प्राण बचे।

हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है।  

Sankat mochan ashtak image

रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

अर्थ- जब रावण ने सीताजी को भय दिखाया और कष्ट दिया और सब राक्षसियों से कहा कि सीताजी को भय दिखाकर मनायें तब अपने वहां पहुँच कर सीता जी के दुःख का नाश किया। आपने वहाँ पहुँच कर महान राक्षसों को मारा। जब सीताजी ने अशोक के वृक्ष से अग्नि मांगी(स्वयं को भस्म करने के लिए) तो आपने उसी वृक्ष पर से श्रीरामचन्द्र द्वारा दी हुई मुद्रिका (अंगूठी) गिरा दी जिससे सीता जी की चिंता दूर हुई।

हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है।  

बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥

अर्थ- जब रावण के पुत्र मेघनाद द्वारा मारा गया बाण लक्ष्मण जी की छाती पर लगा और उससे उनके प्राण संकट में पड़ गए तब आप ही सुषेण वैद्य को घर सहित उठा लाये और द्रोणाचल पर्वत सहित संजीविनी बूटी ले कर आये जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बचे। हे हनुमान (Ashtak) जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है।  

रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

अर्थ- रावण ने घोर युद्ध करते हुए सबको नागपाश में बांध दिया तब श्री रघुनाथ सहित पूरे दल में यह मोह छा गया कि यह बहुत बड़ा संकट है उस समय अपने गरुड़जी  को लाकर बंधन को कटवा दिया जिससे यह संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन (Ashtak) नाम नहीं जानता है।  

बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

अर्थ- जब अहिरावण श्री रघुनाथ को लक्ष्मण जी सहित पाताल को लेकर गया और भली भांति देवीजी की पूजा करके सबके परामर्श से यह निश्चय किया कि इन दोनों भाइयों की बलि दूंगा उसी समय आपने वहां पहुँच कर अहिरावण को उसकी सेना सहित मार डाला। हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है।  

काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥

अर्थ- हे हनुमानजी आपने बड़े-बड़े देवों के कार्य सँवारे हैं अब आप देखिये और सोचिये कि मुझ दीन-हीन का ऐसा कौन सा संकट है जिसे आप दूर नहीं कर सकते। हे महावीर हनुमान जी हमारा जो कुछ भी संकट हो आप उसे शीघ्र दूर कर दीजिए।

हे हनुमान जी संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकटमोचन नाम नहीं जानता है।  

॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥

अर्थ- आपका शरीर लाल है आपकी पूंछ लाल है और आपने लाल रंग का सिंदूर धारण कर रखा है आपके वस्त्र भी लाल हैं। आपका शरीर वज्र है और आप दुष्टों का नाश कर देते हैं। हे हनुमान (Ashtak) जी आपकी जय हो जय हो जय हो।

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