
|| भगवान कार्तिकेय स्तोत्र ||
इस स्तोत्र में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) के 28 नामों की महिमा का वर्णन किया गया है। प्रत्येक नाम उनके स्वरूप, शक्ति, और उपासना से जुड़े अर्थों को प्रकट करता है।
योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनन्दनः।
स्कंदः कुमारः सेनानी स्वामी शंकरसंभवः॥ 1 ||
अर्थ: भगवान कार्तिकेय योगियों के स्वामी हैं, महान सेनापति हैं। वे कार्तिकेय और अग्नि के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्हें स्कंद, कुमार, देवताओं की सेना के नायक, और भगवान शंकर के पुत्र के रूप में जाना जाता है।
गांगेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः।
तारकारिरुमापुत्रः क्रोधारिश्च षडाननः॥ 2 ||
अर्थ: वे गंगा से उत्पन्न हैं (गांगेय), उनके मुकुट पर ताम्र वर्ण का तेज है। वे ब्रह्मचारी और मयूरध्वज धारण करने वाले हैं। वे तारकासुर का वध करने वाले, माता पार्वती के पुत्र, क्रोध का नाश करने वाले और षडानन (छः मुख वाले) के रूप में प्रसिद्ध हैं।
शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः।
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षफलप्रदः॥ 3 ||
अर्थ: वे शब्दब्रह्म (ज्ञान के सागर) के रूप में प्रतिष्ठित हैं। सिद्ध (सिद्धियों के दाता), सरस्वती के पूजनीय, गुह (गुप्त रहस्य रखने वाले) और सनत्कुमार (सनातन ज्ञान के प्रतीक) के रूप में जाने जाते हैं। वे भोग (सांसारिक सुख) और मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) दोनों प्रदान करने वाले हैं।
शरजन्मा गणाधीशः पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत्।
सर्वागमप्रणेता च वांछितार्थप्रदर्शनः॥ 4 ||
अर्थ: वे शरजन्मा (शर पेड़ के नीचे प्रकट हुए), गणों के अधिपति (गणाधीश) और गणेश जी के बड़े भाई हैं। वे मुक्ति के मार्ग के प्रणेता और समस्त आगम (धार्मिक ग्रंथों) के रचयिता हैं। वे साधकों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं।
अष्टाविंशतिनामानि मदीयानीति यः पठेत्।
प्रत्यूषं श्रद्धया युक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत्॥ 5 ||
अर्थ: जो व्यक्ति प्रातःकाल श्रद्धा सहित इन 28 नामों का पाठ करता है, वह वाणी से असमर्थ (मूक) व्यक्ति भी वाक्पटु (वाचस्पति) बन जाता है।
महामंत्रमयानीति मम नामानुकीर्तनात्।
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥ 6 ||
अर्थ: इन नामों का उच्चारण महामंत्र के समान है। मेरे नामों के जप से साधक महान प्रज्ञा (बुद्धिमत्ता और ज्ञान) प्राप्त करता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।
महत्त्व:
यह स्तोत्र भगवान कार्तिकेय के गुणों का सार है। इसका पाठ करने से वाणी, बुद्धि, और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। साथ ही, भक्त को उनकी कृपा से सभी इच्छाओं की पूर्ति और अंततः मुक्ति का मार्ग मिलता है।