
॥दोहा॥
श्री गणपति गुरु गउ़रि, शंकर हनुमत कीन्ह।
बिनवउं शुभ फल देन हरि, मुद मंगल दीन॥
अर्थ: मैं श्री गणपति, गुरु, माता गौरी, भगवान शंकर और हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ। मैं उनसे सुखद और मंगलकारी फल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूँ।
॥ चौपाई॥
जयति जयति शुक्र देव दयाला।
करत सदा जनप्रतिपाला॥
अर्थ: दयालु शुक्र देव जी की जय हो, जो अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं।
श्वेताम्बर, श्वेत वारन, शोभित।
मुख मंद, चंदन हिय लोभित॥
अर्थ: सफेद वस्त्र धारण किए और सफेद वाहन पर सवार शुक्र देव जी का शांत मुख और चंदन जैसा हृदय मन को मोह लेता है।
सुन्दर रत्नजटित आभूषण।
प्रियहिं मधुर, शीतल सुवासण॥
अर्थ: शुक्र देव सुंदर रत्नों से जड़े आभूषण पहनते हैं और उन्हें मधुर व शीतल सुगंध प्रिय है।
सप्त भुज, सोभा निधि लावण्य।
करत सदा जन, मंगल कान्य॥
अर्थ: सात भुजाओं वाले शुक्र देव सौंदर्य और शोभा के भंडार हैं। वे हमेशा अपने भक्तों को शुभता और कल्याण प्रदान करते हैं।
मंगलमय, सुख सदा सवारथ।
दीनदयालु, कृपा निधि पारथ॥
अर्थ: शुक्र देव शुभता के प्रतीक, सुख के दाता, दीनों पर दया करने वाले और कृपा का भंडार हैं।
शुभ्र स्वच्छ, गंगा जल जैसा।
दर्शन से, हरषाय मनैसा॥
अर्थ: शुक्र देव का स्वरूप गंगा जल की तरह स्वच्छ और पवित्र है। उनके दर्शन से मन आनंदित हो जाता है।
त्रिभुवन, महा मंगल कारी।
दीनन हित, कृपा निधि सारी॥
अर्थ: वे तीनों लोकों में महान शुभता फैलाने वाले और दीन-हीन लोगों के लिए कृपा का भंडार हैं।
देव दानव, ऋषि मुनि भक्तन।
कष्ट मिटावन, भंजन जगतन॥
अर्थ: देवता, दानव, ऋषि, मुनि और भक्त सभी शुक्र देव की कृपा से अपने कष्ट दूर करते हैं।
मोहबारी, मनहर हियरा।
सर्व विधि सुख, सौख्य फुलारा॥
अर्थ: शुक्र देव मोह को दूर करते हैं और मन को प्रसन्न करते हैं। वे हर प्रकार के सुख प्रदान करते हैं।
करत क्रोध, चपल भुज धारी।
कष्ट निवारण, संत दुखारी॥
अर्थ: यद्यपि कभी-कभी शुक्र देव क्रोध भी करते हैं, लेकिन वे संतों के दुख दूर करने वाले और उनके कष्ट मिटाने वाले हैं।
शुभ्र वर्ण, तनु मंद सुहाना।
कष्ट मिटावन, हर्षित नाना॥
अर्थ: उनका शरीर शुभ्र और सुंदर है। वे हर प्रकार के कष्ट मिटाकर सभी को प्रसन्न करते हैं।
दुष्ट हरण, सुजनन हितकारी।
सर्व बाधा, निवारण न्यारी॥
अर्थ: शुक्र देव दुष्टों का नाश करते हैं और सज्जनों का भला करते हैं। वे सभी बाधाओं को अनोखे ढंग से दूर करते हैं।
सुर पतिहिं, प्रभु कृपा विलासिन।
कष्ट निवारण, शुभ्र सुवासिन॥
अर्थ: शुक्र देव देवताओं के स्वामी हैं। उनकी कृपा से कष्ट समाप्त होते हैं और सुख-शांति प्राप्त होती है।
वेद पुरान, पठत जन स्वामी।
मनहरण, मोहबारी कामी॥
अर्थ: शुक्र देव वेद और पुराणों में वर्णित हैं। वे मोह को दूर करने वाले और कामनाओं को पूरा करने वाले हैं।
सप्त भुज, रत्नजटित माला।
कष्ट निवारण, शुभ फलशाला॥
अर्थ: शुक्र देव सात भुजाओं में रत्नजटित माला धारण किए हुए हैं और अपने भक्तों के कष्ट दूर करके शुभ फल देते हैं।
सुख रक्षक, सर्वसुख दाता।
सर्व कामना, फल दाता॥
अर्थ: शुक्र देव सुखों के रक्षक और हर प्रकार की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले दाता हैं।
मानव कृत, पाप हरे प्रभु।
सर्व बाधा, निवारण रघु॥
अर्थ: मनुष्यों द्वारा किए गए पापों का नाश करने वाले और बाधाओं को दूर करने वाले प्रभु शुक्र देव हैं।
रोग निवारण, दुख हरणकर।
सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥
अर्थ: शुक्र देव रोगों को दूर करते हैं और हर प्रकार से शुभ फल प्रदान करते हैं।
नमन सकल, सुर नर मुनि करते।
व्रत उपासक, दुख हरण करते॥
अर्थ: देवता, मनुष्य और मुनि शुक्र देव को नमन करते हैं। वे उपासकों के दुखों को हर लेते हैं।
शरणागत, कृपा निधि सोइ।
जन रक्षक, मोहे दुख होई॥
अर्थ: जो उनकी शरण में आते हैं, शुक्र देव उनकी रक्षा करते हैं और उनके दुख हर लेते हैं।
शुद्ध भाव, से जो नित गावै।
सर्व सुख, परम पद पावै॥
अर्थ: जो भक्त शुद्ध भाव से शुक्र चालीसा का नित्य पाठ करता है, वह सभी सुख प्राप्त करता है और परम पद को पाता है।