
वट पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म में विशेष मान्यता प्राप्त व्रत है, जिसे विशेष रूप से विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष (बरगद) की पूजा करती हैं, जिससे इसका नाम “वट पूर्णिमा” पड़ा।
‘वट’ का अर्थ होता है बरगद का वृक्ष, और ‘पूर्णिमा’ का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा की रात। यह व्रत मुख्यतः उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
वट पूर्णिमा व्रत क्यों रखा जाता है?
वट पूर्णिमा व्रत के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व है। इस व्रत से जुड़ी प्रमुख मान्यताएं निम्नलिखित हैं:
1. सावित्री और सत्यवान की कथा
इस व्रत की मूल कथा सावित्री-सत्यवान की है। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से अपने तप और भक्ति के बल पर पुनर्जीवित कराया था। इसी अद्भुत प्रेम, समर्पण और शक्ति को स्मरण करते हुए यह व्रत रखा जाता है।
2. पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए
विवाहित स्त्रियाँ यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन के लिए करती हैं, जैसे करवा चौथ और तीज व्रत।
3. संतान सुख और सौभाग्य की प्राप्ति
जो महिलाएं संतान सुख की इच्छा रखती हैं, वे भी यह व्रत करती हैं। मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
4. वट वृक्ष का आयुर्वेदिक और धार्मिक महत्व
बरगद का पेड़ त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – का प्रतीक माना गया है। इसकी छाया में बैठना, इसकी पूजा करना आध्यात्मिक और स्वास्थ्य दृष्टि से भी लाभकारी होता है।
वट पूर्णिमा व्रत की पूजन विधि
वट पूर्णिमा व्रत में विशेष नियम और पूजा की विधि होती है। इस दिन निम्न कार्य किए जाते हैं:
1. स्नान और संकल्प
- प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें: “मैं आज वट पूर्णिमा का व्रत अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और सुख-समृद्धि हेतु करती हूँ।”
2. वट वृक्ष की पूजा
- पास के वटवृक्ष (बरगद) के नीचे जाकर पूजा की जाती है।
- वृक्ष को जल चढ़ाया जाता है, लाल वस्त्र, मौली, चूड़ियां, सिंदूर, फल, फूल आदि अर्पित किए जाते हैं।
3. सूत्र (धागा) लपेटना
- महिलाएं वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और कच्चा सूत (मौली) वृक्ष के चारों ओर लपेटती हैं।
- यह परिक्रमा पति की उम्र और अपनी श्रद्धा के अनुसार 7, 11 या 21 बार की जाती है।
4. सावित्री-सत्यवान की कथा
- पूजा के बाद सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा सुनी और सुनाई जाती है।
- कथा के माध्यम से यह सिखाया जाता है कि एक स्त्री की श्रद्धा, व्रत और तपस्या क्या-क्या चमत्कार कर सकती है।
5. आरती और प्रसाद वितरण
- पूजा के अंत में दीपक जलाकर आरती की जाती है और प्रसाद (चने, गुड़, फल आदि) बांटा जाता है।
वट पूर्णिमा व्रत के दिन क्या करना चाहिए?
- सात्विक भोजन या उपवास रखें
– महिलाएं इस दिन उपवास करती हैं। कुछ केवल फलाहार लेती हैं, कुछ जल और फल पर व्रत करती हैं। - श्रद्धा और विश्वास बनाए रखें
– व्रत को केवल परंपरा न समझें, बल्कि इसमें पूर्ण श्रद्धा रखें। - दूसरों की सहायता करें
– इस दिन किसी गरीब महिला को वस्त्र, श्रृंगार सामग्री आदि का दान करें। - पति की सेवा करें
– यह व्रत पति के सौभाग्य हेतु है, अतः दिनभर उनकी सेवा और सुख की भावना रखें। - दूसरों का तिरस्कार या बुरा न सोचें
– इस दिन मन, वाणी और कर्म को पवित्र और सकारात्मक बनाए रखें।
वट पूर्णिमा व्रत के लाभ
1. पति की दीर्घायु
– यह व्रत मुख्यतः पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। यह स्त्री के समर्पण और प्रेम का प्रतीक है।
2. सुखी वैवाहिक जीवन
– पति-पत्नी के बीच प्रेम, सहयोग और समझ में वृद्धि होती है।
3. संतान सुख की प्राप्ति
– संतानहीन महिलाएं यह व्रत रखकर संतान प्राप्ति की कामना करती हैं और उन्हें शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
4. पुण्य की प्राप्ति
– इस दिन किए गए दान, व्रत, सेवा आदि से असीम पुण्य प्राप्त होता है।
5. आध्यात्मिक शक्ति और आत्मविश्वास
– सावित्री जैसी साहसी और समर्पित स्त्री की कथा से प्रेरणा मिलती है, जिससे आत्मबल बढ़ता है।
6. प्रकृति से जुड़ाव और स्वास्थ्य लाभ
– वटवृक्ष के नीचे बैठने और उसकी छाया में समय बिताने से मन को शांति और शरीर को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
वट पूर्णिमा व्रत का जीवन पर प्रभाव
1. सकारात्मकता का संचार
– इस व्रत से मन में श्रद्धा, प्रेम और सेवा की भावना बढ़ती है। जीवन में संयम और संतुलन आता है।
2. धैर्य और समर्पण की भावना
– सावित्री के चरित्र से यह सिखने को मिलता है कि सच्चा प्रेम और तपस्या असंभव को भी संभव बना सकती है।
3. परिवारिक सौहार्द
– स्त्री जब अपने पति और परिवार के लिए उपवास करती है, तो उसका भाव पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधता है।
4. आध्यात्मिक उन्नति
– यह व्रत आत्मिक बल और भक्ति की ओर प्रेरित करता है। इसमें शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है।
5. परंपरा और संस्कृति से जुड़ाव
– यह व्रत भारतीय नारी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखता है। यह आस्था और विश्वास को सुदृढ़ करता है।
वट पूर्णिमा व्रत एक श्रद्धा, समर्पण और नारी शक्ति का प्रतीक पर्व है। यह न केवल पति के जीवन की रक्षा के लिए रखा जाता है, बल्कि यह स्त्री के आंतरिक बल, प्रेम और आत्मिक शक्ति को भी दर्शाता है। यह व्रत हमारे जीवन में संयम, भक्ति, सेवा और संकल्प जैसे सद्गुणों को स्थापित करता है।
जो महिलाएं इसे श्रद्धा से करती हैं, उन्हें निश्चित रूप से इसका शुभ फल प्राप्त होता है। यह परंपरा हमें नारी के आदर्श स्वरूप, उसकी शक्ति और उसके महत्व को समझाने का अवसर देती है।