
गोविंद द्वादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है, जिसे विशेष रूप से भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास (अगहन) या फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आता है। इसे “वैकुंठ द्वादशी” और “भोगी द्वादशी” के नाम से भी जाना जाता है। गोविंद द्वादशी को व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति, पापों से मुक्ति और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
गोविंद द्वादशी का महत्व
गोविंद द्वादशी का विशेष महत्व है क्योंकि यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन व्रत और उपासना करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है और वह बैकुंठ धाम की यात्रा करता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर भगवान की भक्ति में लीन होना चाहते हैं।
धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथा
गोविंद द्वादशी से जुड़ी एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार राजा नृग ने अपने जीवनकाल में अनेक दान-पुण्य किए थे, लेकिन एक छोटी सी भूल के कारण उन्हें श्राप मिल गया और वह गिरगिट बन गए। बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने कर-कमलों से मुक्ति प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि राजा नृग ने गोविंद द्वादशी के दिन व्रत और पूजा की थी, जिससे उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति हुई। इसीलिए, इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
इस समय पर पिंडदान कुंवारा पंचमी पर राहुकाल को छोड़कर किसी भी समय किया जा सकता है।
गोविंद द्वादशी व्रत की पूजा विधि
गोविंद द्वादशी व्रत को विधि-विधान से करने से अधिकतम लाभ मिलता है। यह व्रत श्रद्धालु भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी होता है। नीचे इसकी संपूर्ण पूजा विधि दी गई है—
1. व्रत की तैयारी
- इस दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- पूजा स्थल को साफ करके वहां एक चौकी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
2. पूजा सामग्री
- जल से भरा कलश
- चंदन, रोली, अक्षत (चावल)
- तुलसी पत्र
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल)
- फल और मिष्ठान
- नारियल और सुपारी
- धूप, दीप और अगरबत्ती
- पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर)
- पीले रंग के वस्त्र और फूल
- विष्णु सहस्त्रनाम या गोविंद द्वादशी व्रत कथा की पुस्तक
3. पूजा विधि
- सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करें ताकि पूजा निर्विघ्न संपन्न हो।
- भगवान विष्णु को जल से स्नान कराएं और पंचामृत से अभिषेक करें।
- भगवान को पीले वस्त्र और तुलसी पत्र अर्पित करें।
- धूप-दीप प्रज्वलित करें और भगवान का ध्यान करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें या श्रीमद्भागवत गीता के 12वें अध्याय का पाठ करें।
- विष्णु भगवान को नैवेद्य अर्पित करें, जिसमें फल, मिष्ठान, खीर और पंचामृत शामिल हो।
- भोग अर्पण के बाद तुलसी के पत्तों के साथ भगवान की आरती करें।
- अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें और व्रत का संकल्प करें।
4. गोविंद द्वादशी व्रत का पारण
- अगले दिन द्वादशी समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें।
- जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, अन्न और धन का दान करें।
गोविंद द्वादशी का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
गोविंद द्वादशी केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
1. आध्यात्मिक महत्व
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- यह व्रत आत्मशुद्धि, मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
- भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. वैज्ञानिक महत्व
- व्रत और उपवास करने से शरीर डिटॉक्स होता है, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है।
- ध्यान और प्रार्थना करने से मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है।
- तुलसी पत्र और पंचामृत का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
गोविंद द्वादशी पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
करने योग्य कार्य:
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, व्रत और दान-पुण्य करना चाहिए।
- गाय को हरा चारा और भोजन खिलाना शुभ माना जाता है।
- श्रीमद्भागवत गीता और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
निषेध कार्य:
- इस दिन तामसिक भोजन (मांस, मद्य, प्याज, लहसुन) का सेवन नहीं करना चाहिए।
- किसी का अपमान या बुरा नहीं सोचना चाहिए।
- झूठ, कपट और छल-कपट से बचना चाहिए।
- अत्यधिक क्रोध और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए।
गोविंद द्वादशी व्रत एक दिव्य पर्व है, जिसे करने से जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम है। इसके द्वारा व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के पापों से मुक्त हो सकता है और बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त कर सकता है। गोविंद द्वादशी केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा और समर्पण के साथ इस व्रत को धारण करना चाहिए और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करनी चाहिए।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
















