
रथ सप्तमी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे सूर्य देव की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को आता है। इसे ‘माघ सप्तमी', ‘सूर्य जयंती' और ‘आरोग्य सप्तमी' के नाम से भी जाना जाता है।
वर्ष 2025 में रथ सप्तमी 4 फरवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है, जो स्वास्थ्य, ऊर्जा और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
शाम्ब और दुर्वासा ऋषि की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सुंदरता पर अत्यधिक अभिमान हो गया था। एक दिन दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका आए। वे कई वर्षों तक कठोर तपस्या करने के कारण अत्यंत दुर्बल और थके हुए दिखाई दे रहे थे। शाम्ब ने उनकी दुर्बलता का उपहास किया और अपमानित भी किया।
दुर्वासा ऋषि अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे। शाम्ब के व्यवहार से क्रोधित होकर उन्होंने उसे कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शाम्ब का शरीर कुरूप और रोगग्रस्त हो गया।
इस दुखद स्थिति को देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को भगवान सूर्य की आराधना करने का परामर्श दिया। पिता की आज्ञा मानते हुए शाम्ब ने माघ शुक्ल सप्तमी के दिन से भगवान सूर्य की कठोर उपासना आरंभ की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें दर्शन दिए और उनका कुष्ठ रोग समाप्त कर दिया।
इस कथा से मिलने वाला संदेश
यह कथा हमें अभिमान से दूर रहने और संयमित आचरण का संदेश देती है। सूर्य देव की उपासना से रोगों का नाश और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
रथ सप्तमी का धार्मिक महत्व
रथ सप्तमी को सूर्य जयंती भी कहा जाता है क्योंकि इसी दिन सूर्य देव का अवतरण माना जाता है। वे जीवन शक्ति और सौर ऊर्जा के स्रोत हैं। उनकी उपासना से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और समृद्धि प्राप्त होती है।
यह पर्व हमें जीवन में सतत प्रगति, उज्ज्वलता और सकारात्मक ऊर्जा का महत्व सिखाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह आत्मज्ञान और शारीरिक शुद्धि का पर्व है।
रथ सप्तमी पर क्या करें?
- स्नान का महत्व:
इस दिन प्रातः सूर्योदय से पहले स्नान करना अति महत्वपूर्ण होता है। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें। स्नान के समय तिल का उपयोग करना शुभ माना जाता है। - सूर्य अर्घ्य:
स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। तांबे के लोटे में जल, लाल फूल और अक्षत डालकर सूर्य देव को अर्पित करें। इस दौरान “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करें। - पूजन विधि:
सूर्य देव की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं। लाल वस्त्र, लाल फूल और गुड़ का भोग अर्पित करें। सूर्य गायत्री मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्। - दान का महत्व:
इस दिन तिल, गुड़, अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से तिल और गुड़ का दान स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है। - व्रत एवं नियम:
यदि संभव हो तो इस दिन उपवास रखें और फलाहार करें। सात्विक भोजन ग्रहण करें और क्रोध, अहंकार जैसे नकारात्मक भावों से दूर रहें। - विशेष हवन:
कुछ लोग इस दिन विशेष रूप से हवन का आयोजन करते हैं जिसमें तिल और गुड़ की आहुति दी जाती है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
रथ सप्तमी का आध्यात्मिक महत्व
इस सप्तमी हमें यह संदेश देती है कि जैसे सूर्य बिना किसी भेदभाव के सबको ऊर्जा प्रदान करता है, वैसे ही हमें भी जीवन में उदारता और परोपकार का भाव अपनाना चाहिए। सूर्य देव की आराधना से हमें आत्मबल, जीवन में सकारात्मकता और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
रथ सप्तमी से जुड़ी मान्यताएँ
- इस दिन पूजा करने से पापों का नाश होता है।
- रथ सप्तमी पर किए गए स्नान और दान का फल हजार गुना बढ़ जाता है।
- सूर्य देव की आराधना करने से मानसिक और शारीरिक रोग दूर होते हैं।
- इस दिन जिन लोगों के कुंडली में सूर्य कमजोर होता है, उन्हें विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।
रथ सप्तमी का पर्व जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व हमें सूर्य देव की अनुकंपा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना, दान और उपवास करने से जीवन में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। 2025 में इस पावन पर्व पर आप भी सूर्य देव की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को उज्ज्वल और ऊर्जावान बनाएं।